शनिवार, मार्च 26, 2011

मेरी एक हिन्दी कविता

*** मुझे लड़ना है ***


अंधेरो से
लड़ना चाहता हूं
मगर दिखता नहीँ
कोई साफ साफ अक्स
इस कलमस मेँ
सब के सब
धुआंए हैं
स्याह धुएं मेँ ।


चौतरफ़ा यह धुआं
आया कहां से
नहीँ बताया
धुआंए चेहरोँ ने
और धुआंने को आतुर
दूसरे लोगोँ ने !


कुछ लोग
कुछ लोगोँ का
जला रहे हैँ दिल
सुलगा रहे हैँ ज़मीर
कुछ लोग
बस केवल
हवा दे रहे हैँ
या फिर झोँक रहे हैँ
अपना ईमान !


कुछ लोग
मुठ्ठियां भीँच रहे हैँ
दूर खड़े
दूर ही खड़े
कुछ और लोग
दांत पीस रहे हैँ
मुठ्ठियां भीँचने वालोँ पर !


कुछ लोगोँ ने
खोल दी हैँ मुठ्ठियां
और
सुस्त चाल चलते
कर रहे हैँ
उनका या समय का
मौन अनुकरण !


मुझे तो अभी लड़ना है
पहले खुद से
अंधेरोँ से
और फिर उनसे
जिनका आभामंडल है
यह स्याह अंधेरा !


.

5 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे तो अभी लड़ना है
    पहले खुद से
    अंधेरोँ से
    और फिर उनसे
    जिनका आभामंडल है
    यह स्याह अंधेरा !
    बहुत खुब जी , धन्यवाद

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  2. मुझे तो अभी लड़ना है
    पहले खुद से
    अंधेरोँ से
    और फिर उनसे
    जिनका आभामंडल है
    यह स्याह अंधेरा !

    बहुत खूब अच्छी संवेदनशील रचना.

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  3. अन्तरंग द्वंद्व की बेहद ही सशक्त भावाभिव्यक्ति ! ओमजी की कविताएँ पढ़कर बहुत ही आनंद आता है और बेहद कुछ सीखने को भी मिलता है..! प्रणाम !

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  4. अन्तरंग द्वंद्व की सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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