रविवार, अप्रैल 01, 2012

नहीं मिल रहे शब्द

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** नहीं मिल रहे शब्द **


मन करता है
आज अच्छी कविता लिखूं
दिल कहता है
पहले प्रीत लिखो
प्रीत में बंधा जगत
बहुत मोहक लगता है
प्रीत ही जगजीत है !

मेरा मैं बोला
पहले पौरुष लिखो
वीर रस की धारा बहाओ
इस धारा में
सारा जग बह जाएगा
सब तुम्हारे शरणागत होंगे
तुम पढ़े लिखे हो
पढ़ा ही होगा मुहावरा
जिसकी लाठी उसकी भैंस !

जी किया खुल कर हंसूं
हंसाऊं सब को
दिल ने साथ दिया
प्रीत में भी चलेगी हंसी
चलती ही है
प्रीत में हंसी ठिठोली
हुंकारा दम्भी मैं भी
युद्ध के बाद जीत मे
चलता है हंसी का दौर
जाओ यहां से तुम
प्रीत-युद्ध-हंसी सब लिख दो

बुद्धि सधे कदमों आई
अचानक बोली
वह लिखो जो बिकता है
जो सदियों तक टिकता है
बहुत बड़े बड़े पुरस्कार
बड़े बड़े सम्मान मिले
तुम तो वही लिखो
जो पाठ्यक्रम में आए
संवेदनाएं बोलें न बोलें
तुम्हारी तूती बोलनी चाहिए ।

पेट जो मौन था
न जाने कब से खाली था
अचानक चिल्लाया
रोटी लिखो-रोटी !
कपड़ा लिखो-कपड़ा !!
मकान लिखो-मकान !!!
मैंने पेट की बात मानी
लिखने बैठा कविता
तब से
नहीं मिल रहे शब्द !

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