शुक्रवार, जून 21, 2013

*मेरे आंगन उतरेगा सूरज*

आज फिर निकला
शरद का चांद 
मेरी छत पर
चांदनी में नहा गया 
आज फिर मेरा आंगन !

घर की दीवारेँ
कांपने लगीं
आज फिर दौड़ कर 
गया मैं छत पर
ढांपने खुली छत
चांद मुस्कुराया
लगा गिर ही जाएगा
बीच आंगन आज !

कांपती रूह
लरज़ते जिस्म
उतर ही आया
कल के सूरज को
अपने आंगन
उतरने का रास्ता दे !

दूर गगन में
टिमटिमाते तारे
हंसने लगे
उन्मुक्त हंसी
मानों खिलाखिला रहे हों
मासूम बच्चे
मदारी के आगे
नाचते नंगे बंदर को
देख कर बेबस !

सूरज भी आएगा
उसी मारग
जिस मारग आ
चांद भर देता है
रगों तक में ठंडापन
उन्हीं रगों मेँ कल
भर देगा आग
जब उतरेगा कल
सूरज मेरे आंगन !

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