सोमवार, जुलाई 29, 2013

*गांव शहर हो गया*

दूर खेत में 
जन्मी ढाणी
पी-पी पली
बारिश का पानी
बदहाली में भी
पल-पल कर
हुई किशोर
गांव बन गई
अब नक्शे पर
आया नाम
बिजली-पानी
स्कूल-पंचायत
पा इतराया गांव
कुछ पढा
कुछ अनपढ़ रह
पाई जवानी
आंख मींच कर
डाले डलवाए वोट
कभी मिला प्यार
कभी खाए सोट ।
इक दिन दबे पांव
इतराती आई सड़क
भोले भाले गांव का
उस से भिड़ गया टांका
हुआ गांव मदहोश
खो बैठा वो अपने होश
छोड़ कर चोला
अब गांव अपना
शहर हो गया
बहता था जो
प्रीत का दरिया
अब वो ज़हर हो गया
गांव मेरा शहर हो गया !

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