शुक्रवार, मार्च 29, 2013

* सपनों के हाइकु *

1.
देखे सपना
हम को छल कर
आंख हमारी ।
2.
देखें सपना
पड़े पलंग पर
नींद तो आए ।
3.
बांटे सपने
रख ली सारी नींद
देखते कैसे !
4.
टूटी खटिया
टूटी टूटी सी नींद
टूटे सपने !
5.
अपनी नींद
पराए थे सपने
आंखों बाहर !

हम फिर पानी हो गए

हम 
पानी की तरह 
बहते रहे 
तुम 
पत्थर की तरह 
लुढ़कते रहे
हम 
नदी की तरह
सिकुड़ते रहे
तुम
आकार पाते रहे
तुम्हें
मंदिरों में मिली जगह
हमें
बादल ले गए
तुम
देव हो कर भी
नहीं बरसे
हम
बरस कर
फिर पानी हो गए !

*कभी पूछो खुद से*

एक चिड़िया फुदकती है
पुष्प की महक चुरा कर
चहचहाती है डाल पर
उसका स्वछंद कलरव
कितना भाता है तुम्हें
घंटो निहार कर
भीतर तक 
रोमांचित हो जाते हो तुम ।

उधर एक घोंसले में
कई दिनों से
उदास बैठी है
एक मौन चिड़िया
वह कभी नहीं आई
तुम्हारे सोच के दायरे में
क्यों नहीं आई
कभी पूछो खुद से !

समय हस रहा है


अब तो लगने लगा है
बहुत तेजी से 
भाग रहा है वक्त
मेरे पास
डायरियों को खंगालने का
निमिष भर नहीं वक्त
ऐसे में
डायरियों में पड़ी
मेरी हजारों कविताएं
कौन पढ़ेगा ।

बेटियों का फोन आया ;
पापा आप चिंता न करें
हम हैं ना
आप तो बस
समय पर दवा लेते रहें
अब मैं
दवा व बेटियों में
कविताओं के अंतर्सम्बंध
ढूंढ़ता हुआ चिंतित हूं
बेटियां अपने घरों में
रोटियां बनाएंगी
झाड़ू-पौंछा लगाएंगी
सास-ससुर की सेवा के बाद
अपनी अगली पीढ़ी में
रम जाएंगी
मेरी कविताओं से अधिक
रस होगा उनके गृहस्थ में ।

बेटियों के फोन के बाद
अब मुझे लगने लगा है
मेरे बाद
मेरी नहीं पढ़ी गई कविताएं
कभी नहीं पढ़ी जाएंगी
मेरी डायरियों के पास
स्वच्छंद घूम रही दीमक
मौन है
मगर बहुत आश्वस्त करती है
भविष्य के लिए
उन से भयभीत मैं
समय पर दवा ले रहा हूं
दवा छिड़क भी रहा हूं
दीमक फिर भी बढ़ रही है
मेरा क्षरण जारी है
समय हस रहा है ।

♥ दिल दा दर्द ♥



दर्द हंडाया नीं जांदा ।
दर्द वंडाया नीं जांदा ।।
लोहा जे होवे भुरणां ।
ओ झंडाया नीं जांदां।।
लोकी मारदे ने गप्पां । 
दिल गंढाया नीं जांदा।।
लगियां जे कर टुट जावे।
मुड़ मंढाया नीं जांदा ।।
मटियां लगया रुख मितरा।
ओ छंडाया नीं जांदा ।।

*थाली का चक्कर *



मेरे पैदा होते ही
घर में जो बजी थी थाली
आज तलक
उसी थाली के चक्कर में
फंसा हुआ हूं
कभी भर जाती है
कभी रह जाती है खाली

उस दिन
शायद यह संकेत था
आज के बाद
हर रोज बजेगी थाली
रोटियां डाल कर
इसे करना होगा मौन ।

पहली बार
जब बजी थी थाली
तब पूरे मोहल्ले के
कान खड़े हुए थे
आज जब भी घर में
बजती है खाली थाली
मेरे अकेले के
खड़े होते हैं कान !

चाह जीने की

काया ज्यों ज्यों ढलती है
चाह जीने की पलती है
राय हकीमों की सारी
इस मुकाम पर खलती है

=============

आसमान से तारा
अचानक टूट कर
अलग हो गया है
लगता है किसी की 
तलाश में गया है ।

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भगवान कभी नहीं बोला
फिर भी उस पर विश्वास किया जाता है ।
आदमी बोल कर कहता है
फिर भी उस पर विश्वास नही होता । कोई तो बात है ।

* वे बहुत भयभीत हैं *



पेड़ हम ने लगाया
छाया तुम ने भोगी
हम आज भी
धूप के साये में हैं
हमारे ऊपर तपती
धूप हमारी हुई तो
तुम गुस्साए
धूप छीनने
घर से निकल आए
धूप में तुम झुलसे तो
हम ने तुम पर हवा की
हवा भी जब
तुम्हें हमारी लगी तो
तुम झल्लाए
कुछ सोच कर
तुम ने पेड़ कटवा दिए
पेड़ कट गए तो
हम बीज बीन लाए
बंद कर लिए
अपनी मुठ्ठियों में
और निकल आए
अपनी ज़मीन के लिए
आज कल वे
हमारी बंद मुठ्ठियों से
बहुत भयभीत हैं ।

सुख देता है अहंकार

हर सुबह
ले कर आती है
नया सुख और नया दुख 
सुख को हम 
भोग लेते हैं पल भर में
मगर दुख का रोना
बैठे रहते हैं ले कर
दिन भर !


दुख मांजता है मन को
सुख लीलता है तन को
फिर भी सुख प्यारा है !

मर कर देखा है

.
दर्द को दिल में भर कर देखा है ।
ज़ख्म को दिल मेँ धर कर देखा है ।।
हाथ आ कर छूट ही ना जाए ।
खुशी को बहुत डर कर देखा है ।।
मरने पर दर्द होता है कितना ।
बार बार खुद मर कर देखा है ।।

. *होली तो हो ली *



जनता कितनी भोली है
ग़म गलत करने को
उसके पास
ईद-दिवाली-होली है ।

महंगाई का चीर
बढ़ रहा है असीम
हरण करने वाले हैं मौन
पूछो तो कहते हैं
आप पूछने वाले हैं कौन
महंगाई नहीं घटने वाली है
सड़कों पर जाओ खेलो
आपके पास
ईद-दिवाली-होली है ।

संतान आठवीं होगी तो
अवतार कृष्ण का होगा
दो पर आ कर
जीवन चक्र थम जाता है
इसी लिए तो भाई
कृष्ण नहीं आ पाता है
कंसों ने बांटी
माला डी की गोली है
अभी तुम कष्ट सहो
अभी फैलानी झोली है
देखो तो कितनी प्यारी
ईद-दिवाली-होली है ।

जब कभी होगी
धर्म की हानि
अवतार हो जाएगा
अभी तो धर्म की तूती है
धर्म गुरुओं की देखो
नेता उठाते जूती हैं
जो कहते थे
धर्म अफीम की गोली है
उनके मुख भी होली है
जाओ तुम भी खेलो
ईद-दिवाली -होली है ।

जनता जब तक भोली है
अरमानो की होली है
रंग हो रहे फीके सारे
सीमाओं के भीतर-बाहर
खून की देखो हो ली है
कहां बची है अब
ईद-दिवाली-होली है ।

होली तो हो ली कब की
अब तो हुड़दंग होता है
जनता रोती हक की खातिर
नेता चैन से सोता है
आंख खोल कर देखो
किस दरवाजे पर
ईद-दिवाली-होली है

2-हाइकु,

1.
कैसे चढ़ता
रंग चटख लाल
चेहरे काले ।
2.
तन उजले
मन काले कोटर
रंग में भंग ।

* असली चेहरा *

* असली चेहरा *

रक्त पी पी कर
लाल हुए चेहरों पर
अब चढ़ता नहीं
रंग कोई दूजा
जी करता है
जमाने भर की 
कालिख पोत दूं 
इन घिनौने चेहरे पर
मगर अफ़सोस
इनके चेहरों पर भी
कई-कई चेहरे चढ़े हैं !

आओ !
इस होली
मिल कर हम
एक काम करें
इनके चेहरों से
नकली चेहरे उतार धरें
असली चेहरा
जो आए सामने
उस के लिए
वाज़िब रंग तैयार करें !