सकल जगत का
हो अगर मनवांछित
तौ अट जाएगा
जग समूचा
निज वांछनाओं के
असीम अंबार से
फिर
वांछना निर्लिप्त पांव
कहां कोई
रख पाएगा ?
मानवी वांछना की
सकल पूर्ति के बाद
फिर नहीं जन्मेंगी
नवीन वांछनाएं
इसकी कौन करेगा
अंतिम घोषणा
और फिर यह
बताए भी कौन ?
क्यूं दबी रहती हैं
कुछ वांछनाएं
मन के भीतर मौन
जिसकी पूर्ती के लिए
टूट ही जाते हैं
बहुत से मौन मन !
हो अगर मनवांछित
तौ अट जाएगा
जग समूचा
निज वांछनाओं के
असीम अंबार से
फिर
वांछना निर्लिप्त पांव
कहां कोई
रख पाएगा ?
मानवी वांछना की
सकल पूर्ति के बाद
फिर नहीं जन्मेंगी
नवीन वांछनाएं
इसकी कौन करेगा
अंतिम घोषणा
और फिर यह
बताए भी कौन ?
क्यूं दबी रहती हैं
कुछ वांछनाएं
मन के भीतर मौन
जिसकी पूर्ती के लिए
टूट ही जाते हैं
बहुत से मौन मन !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें