tag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post1146296045732648041..comments2024-01-03T11:38:24.610+05:30Comments on 'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….: दो कविताएंओम पुरोहित'कागद'http://www.blogger.com/profile/13038563076040511110noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-3547942800027567452012-05-30T20:14:27.140+05:302012-05-30T20:14:27.140+05:30"मेरे सोच की गली" ह्रदय को द्रवित करती ह..."मेरे सोच की गली" ह्रदय को द्रवित करती है! अत्यंत मार्मिक ! आह !<br /><br />"जब चाहें कर दें कत्ल मेरा ।<br />मरने का भी चाव बहुत है ।।<br /><br />अपनी कीमत ख़ाक बराबर ।<br />उनके ऊंचे भाव बहुत हैं ।।"<br /><br />हम तो खाक ही रहे! मिट गए पर खास न हुए! वाह गुरू जी ! जितनी तारीफ़ की जाए कम है!sushilahttps://www.blogger.com/profile/05803418860654276532noreply@blogger.com