tag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post4059617397771021076..comments2024-01-03T11:38:24.610+05:30Comments on 'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….: ओम पुरोहित कागद की तीन हिन्दी कविताएँओम पुरोहित'कागद'http://www.blogger.com/profile/13038563076040511110noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-85951343868607193542010-06-16T19:02:57.328+05:302010-06-16T19:02:57.328+05:30Sir Aap ne to ak katu schchai bya ki hai.Sir Aap ne to ak katu schchai bya ki hai.Gaurav Baranwalhttps://www.blogger.com/profile/03667845309459357447noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-50829658281849371332010-05-27T18:56:03.840+05:302010-05-27T18:56:03.840+05:30UN SAB MITRON EVAM PATHKON KO DHANYWAD JO MERE BLO...UN SAB MITRON EVAM PATHKON KO DHANYWAD JO MERE BLOG PAR AAYE .MERI KAVITAYEN PADH KAR TIPPNI KARNE WALE PRABUDH PATHKON KA AABHAR !PADH KAR MANAN KARNE WALON KO SADHUWAD !AASHA HAI MERA UTSAH BADHATE RAHENGE !ओम पुरोहित'कागद'https://www.blogger.com/profile/13038563076040511110noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-21466719723026252462010-05-24T19:52:58.377+05:302010-05-24T19:52:58.377+05:30manmohak teeno kavitae :)
http://liberalflorence....manmohak teeno kavitae :)<br /><br />http://liberalflorence.blogspot.com/<br />http://sparkledaroma.blogspot.com/Dr. Tripat Mehtahttps://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-89237630126244242542010-05-24T04:03:29.828+05:302010-05-24T04:03:29.828+05:30तीनों ही कवितायें अलग-अलग विषय पर लिखी गयीं निहायत...तीनों ही कवितायें अलग-अलग विषय पर लिखी गयीं निहायत ही खूबसूरत रचनाएं हैं सर.. लघुकथा के बारे में आपका निर्दिष्ट करना बहुत अच्छा लगा.. आगे से कोशिश करूंगा कि और भी कम शब्दों में बात कह सकूं. स्नेह बनाये रखें.दीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-54699252230510788802010-05-23T23:46:53.151+05:302010-05-23T23:46:53.151+05:30pehli baar aapke blog par aaya aur aapka fan ho ga...pehli baar aapke blog par aaya aur aapka fan ho gaya hun me<br /><br />http://bejubankalam.blogspot.com/arpithttps://www.blogger.com/profile/16036589058225837027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-218602229930710302010-05-22T22:24:32.143+05:302010-05-22T22:24:32.143+05:30आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! आपने बिलकु...आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! आपने बिलकुल सही कहा है! मेरा घर समंदर के किनारे है ऑस्ट्रेलिया में और इंडिया में भी इसलिए मेरे पास तरह तरह के शंख का क्लैक्सन है और मैं जहाँ भी घूमने जाती हूँ वहाँ से भी शंख का क्लैक्सन करती हूँ!Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-4778459106393734172010-05-22T01:44:26.478+05:302010-05-22T01:44:26.478+05:30आपकी सारी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर और शानदार लगा! बधा...आपकी सारी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर और शानदार लगा! बधाई!Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-52509188831945377452010-05-20T23:31:16.667+05:302010-05-20T23:31:16.667+05:30आपकी तीनों रचनाएं स्तरीय,बेहतरीन और लाज़वाब है ओमज...आपकी तीनों रचनाएं स्तरीय,बेहतरीन और लाज़वाब है ओमजी।हर्षिताhttps://www.blogger.com/profile/04799029469213410208noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-80478482935983508972010-05-20T12:07:32.372+05:302010-05-20T12:07:32.372+05:30आदरणीय ओमजी की तीनो ही रचनाएं समाजवाद और अन्त्योदय...आदरणीय ओमजी की तीनो ही रचनाएं समाजवाद और अन्त्योदय की भावना से ओतप्रोत और संवेदनशील है जिसमे आपकी पीड़ा भी परिलक्षित होती है..कहते हैं साहित्य समाज का आइना होता है..और सच्चा साहित्यकार वोही है जो अपने सृजन धर्म का पालन समष्टि भाव से आईना बनकर करता है..आपकी कविताओं में एक सच्चे कवि और साहित्यकार होने के सभी भाव परिलक्षित होते हैं...और इसी कारण आपकी ये रचनाएँ बेहद भावुकता के साथ अंतर्मन को झकझोर कर सोचने पर मजबूर करती हुई सार्थकबन पड़ी है. सबसे खास बात ये है की इन कविताओं में मुझे मुंशी प्रेमचंद और श्री प्रसाद जी जैसी अभिव्यक्ति का अहसास हुवा. कहीं आप प्रकृति को माध्यम बनाकर समाज में व्याप्त विसंगतियों, आडम्बरों और खोखलेपन को भी बखूबी उभारने में सफल हुवे हैं तो कहीं मंदिर में भगवान की आँख के नवीन प्रतिबिम्ब के माध्यम से आप सामाजिक विषमताओं का सटीक और यथार्थ चित्रण करते हुवे प्रतीत होते हैं...जिसमे आप सफल भी हुवे हैं...<br />..इन रचनाओं के बारे में जितना भी कहूँ, कम होगा...संक्षिप्त में इतना ही कहूँगा... की बेहद ही यथार्थ, संवेदनशील और उच्चस्तरीय रचनाएं हैं आपकी...साधुवाद !! प्रणाम ! जय राजस्थान ! जय भारत !!Narendra Vyashttps://www.blogger.com/profile/12832188315154250367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-80895665564419323902010-05-20T10:40:05.875+05:302010-05-20T10:40:05.875+05:30आदर जोग ॐ जी ,
सादर प्रणाम ,
आप की तीनो रचनाये बेह...आदर जोग ॐ जी ,<br />सादर प्रणाम ,<br />आप की तीनो रचनाये बेहतरीन है , मेरी पसंद की कविताए '' आ ऋतु राज आ '' और पत्थरों के शहर में '' है , बखूबी से आप ने दोनों कविताओं के वातावरण को और शिल्प को मांजा है , कौनसी पंक्तिया कोट करू कौनी नहीं दुविधा है , नए लिखारो को आप से कुछ सिखने को ही मिलेगा , ऐसा मेरामानना है ,<br />साधुवादसुनील गज्जाणीhttps://www.blogger.com/profile/12512294322018610863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-28013756741637357502010-05-20T06:30:43.266+05:302010-05-20T06:30:43.266+05:30आप की तीनो रचनाये बहुत ही अच्छी लगीआप की तीनो रचनाये बहुत ही अच्छी लगीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-32178241280642716062010-05-20T00:21:57.202+05:302010-05-20T00:21:57.202+05:30ॐ कैसे शुक्रियादा करूँ, फिर-फिर पढने वाली कविताएँ...ॐ कैसे शुक्रियादा करूँ, फिर-फिर पढने वाली कविताएँ पहले सुनी थीं, अब फिर पढने को मिल रहीं हैं.....क्या बात है...... " आ ऋतुराज <br />खाली होने के कारण, <br />आगे झुकते <br />नत्थू के पेट में कुछ भर दे। <br />भर दे भले ही, <br />रात के सन्नाटे में <br />पत्थर का परोसा।" या फिर........ "मैं बे-बस हूं। <br />तभी तो- <br />मैं अपना श्रम बेचता हूं। <br />मैं न्याय क्या मांगूं? <br />न्याय संविधान में छुपा है। <br />मेरी पीठ कमजोर है। <br />संविधान को ढ़ो कर <br />अपने गांव नही ला सकता। "............... या फिर.........<br />" उसका नत्थू ; <br />आक को छेड़ते हुए अंधा हो लिया <br />डाक्टर के यहां <br />रोजाना लाइन में खड़ा हो <br />उम्र भर की कमाई खो <br />पत्थर की आंख भी नहीं ला पाया। <br />मांगने पर दुत्कारा गया। <br />पत्थरों के शहर में, <br />पत्थर की आंख के लिए मारा गया। <br />बस इतना सा अपवाद है, <br />वरना यहॉं पूरा समाजवाद है। "............ धन्यवाद,,,,,,,,,,,,राजेश चड्ढ़ाhttps://www.blogger.com/profile/13615403040017262901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-36758245817902773832010-05-19T18:33:48.689+05:302010-05-19T18:33:48.689+05:30कागद जी ,आपकी कविताएँ पढ़े बिना कैसे रह सकता हूँ.
आ...कागद जी ,आपकी कविताएँ पढ़े बिना कैसे रह सकता हूँ.<br />आपकी इन कविताओं में आक्रोश का स्वर बहुत तल्ख़ है,जो एक संवेदनशील कवि की आवश्यक परिणति है.<br />परिवेश की विसंगतियों और विषमताओं का सटीक खुलासा किया है आपने .<br />प्रगतिशीलता की प्रवृत्ति तीनों कविताओं का श्रृंगार है.<br />अस्तु.चैन सिंह शेखावतhttps://www.blogger.com/profile/18079689283863767097noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-34837911619477481822010-05-19T18:00:57.505+05:302010-05-19T18:00:57.505+05:30बहुत बढिया कवितायें .बहुत बढिया कवितायें .किरण राजपुरोहित नितिलाhttps://www.blogger.com/profile/13893981409993606519noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-50154313231227419902010-05-19T18:00:57.506+05:302010-05-19T18:00:57.506+05:30एक एक रचना ही लिखा कीजिये पुरोहित जी ,क्योंकि ऎसी ...एक एक रचना ही लिखा कीजिये पुरोहित जी ,क्योंकि ऎसी सशक्त रचना को पचने में भी समय लगता है और मेरे पास हाजमा तेज करने की कोई दवा नहीं है<br />नत्थू के बेटे के लिए पत्थर की आँख भी नहीं है <br />सुरजी के लिए धानी रंग का जोड़ा भी नहीं है <br />परन्तु उच्च रक्तचाप की दवा है लेकिन वो इतने कड़े पत्थर जैसी लकडियाँ हैं कि मैं पीस नहीं पास रही ,मशीन की ब्लेड दो बार टूट चुकी है ,अब सोच रही हूँकि लकडियाँ ही भेज दूँ ,आप पिसवा ही लेंगेalka mishrahttps://www.blogger.com/profile/01380768461514952856noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-87591261795599012012010-05-19T16:00:19.128+05:302010-05-19T16:00:19.128+05:30पहली बार अवसर मिला यहाँ आपको पढने का....
तीनो कवि...पहली बार अवसर मिला यहाँ आपको पढने का....<br /><br />तीनो कविताएँ अपने अपने विषय में सम्पूर्ण....बहुत बढ़िया...<br /><br />मेरे ब्लॉग पर आपके आने का शुक्रिया <br /><br />यहाँ आ कर भी हौसला बढ़ाएं..<br /><br /><br />http://geet7553.blogspot.com/संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-7370364558195968662010-05-19T08:10:20.271+05:302010-05-19T08:10:20.271+05:30बेहद आभार आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिए.
&quo...बेहद आभार आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिए. <br />"आपकी तीनो ही रचनाये अपने आप में एक अलग ही रंग लिए हैं....तीनो ने ही प्रभावित किया.." <br />regardsseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-26441918548249387502010-05-18T23:20:43.748+05:302010-05-18T23:20:43.748+05:30बहुत सुन्दर रचनाएँ, मेरे पास इन रचनाओं की तारीफ़ क...बहुत सुन्दर रचनाएँ, मेरे पास इन रचनाओं की तारीफ़ के शब्द नहीं है, बहुत दिनों बाद इस तरह की बेहतरीन रचनाएँ पढने को मिली है, दिल से तारीफ़ कर रहा हूँ, धन्यवाद्!nilesh mathurhttps://www.blogger.com/profile/15049539649156739254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-15084163074697795502010-05-18T21:40:42.552+05:302010-05-18T21:40:42.552+05:30बहुत सशक्त अभिव्यक्ति.........कागद जी आप जैसा संवे...बहुत सशक्त अभिव्यक्ति.........कागद जी आप जैसा संवेदनशील कवि ही दलित विमर्श की ऐसी श्रेष्ठ रचना लिख सकता है......बदलते परिवेश व परिस्थियों ने मानवीय संवेदना को कितना खोखला बना दिया है कि पत्थर पूजे जाते है इन्सान दुत्कारे जाते है...आज मानव व मानवता को बचाने की महती आवश्यकता है.........श्रेष्ठ सृजन हेतु बधाई स्वीकार करे।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/03959513530880200076noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-70337110234714582042010-05-18T21:26:26.080+05:302010-05-18T21:26:26.080+05:30बहुत ही अच्छी लगी आप की तीनो रचनाये.
धन्यवादबहुत ही अच्छी लगी आप की तीनो रचनाये.<br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6626498952070818516.post-88281192567125353292010-05-18T19:55:01.370+05:302010-05-18T19:55:01.370+05:30निहाल कर दिया कागद जी !
अत्यन्त अनुपम और साहित्य...निहाल कर दिया कागद जी !<br /><br />अत्यन्त अनुपम और साहित्यिक कवितायें .................<br /><br />बाँच कर मन अभिभूत हो गयाAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.com