ताजा हिन्दी कविताएं
*आती नहीँ सांस*
थोड़ी सी
* तस्वीर *
तस्वीर बनाई मैँनेँ
*सम्भल सको तो*
आंख उठा कर
सब ने समवेत किया
घर
* चिंताएं *
दम तोड़ती सड़क के किनारे
* बटोर लो पत्थर *
किसी ने
@मिटाओ सबब@
आंख के आंसू
*कबुत्तरपनि*
आप
* हम बोले रोटी *
उन्होँने कहा-
*चलो चलेँ*
समझदारोँ की भीड़ मेँ
*मेरा सपना*
रात भर जागना
*सपने*
तेरी आंखों मेँ
*दीया जलाएं*
आसमान साफ
*बारिश*
मरुधरा पर
*आती नहीँ सांस*
थोड़ी सी
खुली हवा मिलते ही
हम ने बो दी
...फसल अधिकारोँ की
फिर किया इंतजार !
कुछ ही दिन बाद
कानून लहलहाए
आसमान छूने लगे
फल फिर भी न आए
अब कानूनोँ के झुरमुट मे
आती नहीँ सांस !
अब तो धरा
करनी ही पड़ेगी
फिर से तैयार
नई फसल के लिए ।
* तस्वीर *
तस्वीर बनाई मैँनेँ
रंग कोई और भर गया ;
चेहरे पर काला
...बालों पर मटमैला
पैरों मेँ नीला
और हाथोँ मेँ भगवां !
मैँ
अपनी ही बनाई
उस तस्वीर से डर गया !
*सम्भल सको तो*
आंख उठा कर
कंधोँ से ऊपर
देखा तुम ने
अन्न से महकी
...सांसोँ की गंध पा कर
जीवन भर गर्वाए तुम
आंख झुका कर
देखो अब तो
पगथल के नीचे
कितने भूखे प्यासे
लाचार दबे हुए !
सम्भल सको तो
सम्भलो तुम
पैरोँ के नीचे से
धरा खिसकने वाली है
झुक कर देखो तो
वो दुनिया उठने वाली है।
** समवेत **
सब ने समवेत किया
चमन को नमन
करोड़ोँ हाथोँ ने
उगाई फसलेँ
लाखोँ हाथोँ ने
...किया श्रम
कारखानोँ-खदानोँ मेँ
हजारोँ हाथोँ ने
किया कागज पर हिसाब
फिर सब ने
दुआ मेँ उठाए हाथ
बहबूदी के लिए सबकी
अचानक न जाने कहां से
तुम आ गए
बटोर लिया सब !
करोड़ोँ भूखे पेट
तड़पे-चिल्लाए
तुम मुस्कुरा कर
भीतर चले गए !
निराश लोग
खेतोँ
खदानोँ
कारखानोँ
कागजोँ मेँ लौट आए !
कब तक चलता
यह सिलसिला
लाचार हाथ
अन्न अन्ना अन्न अन्ना
उचारते
मुठ्ठियां तान लौटे हैँ
कहां हो अब तुम ?
** घर **
घर
घर है
और
बाहर
बाहर ही
...दोनोँ का
अपनी अपनी जगह रहना
बहुत जरूरी है
घर से बाहर होने पर
घर साथ रहे तो
घर कभी
बिखरता नहीँ
और यदि
घर लौटते वक्त
बाहर भी
घर के भीतर
आ जाए तो
कभी कभी
बिखर जाता है घर ।
* चिंताएं *
दम तोड़ती सड़क के किनारे
फुटपाथ पर छितराए
कंकरीट पर तप्पड़ बिछा
...अपनी गृहस्थी के संग
सांझ ढले से बैठा
कितना खुश है नत्थू !
रोटी आज नहीँ मिलेगी
जानते हैँ उसके परिजन
मग़र उनकी चिंताओँ मेँ
रोटी नहीँ
फिक्र है
नींद मेँ सोई अम्मा की
जो नहीँ है शामिल
आज रात हथाई मेँ ।
उधर
अघाए पेटोँ के ऊपर
अटकी है सांसे
गिरवी पड़ी है
कई दिनोँ की नींद
अज्ञात चोरोँ के यहां !
* बटोर लो पत्थर *
किसी ने
कोई पत्थर नहीँ उछाला
न कहीँ आस पास
कोई दुष्यन्त कुमार ही है
...फिर ये आसमान मेँ
छेद क्योँ कर हुआ !
आज
आसमान मेँ छेद है
ओजोन परत के पार
यह भी नतीजा है
तबीयत से
पत्थर न उछालने का !
अब भी वक्त है
बटोर लो पत्थर
दुरुस्त कर लो
अपनी अपनी तबीयत
वक्त गुजरने के बाद
पानी सिर से
पार हो जाएगा
फिर कहीँ से भी
पत्थर हाथ नहीँ आएगा
तब ये नंगा आसमान
खूब चिड़ाएगा !
@मिटाओ सबब@
आंख के आंसू
पौंछ भी लूं
भीतर के आंसू तो
...कर ही देँगे नम
यह नमी
दिखेगी नहीँ
मेरा अंतस मगर
जला कर
कर देगी राख
यह राख
एक दिन
ढांप ही लेगी
तुम्हारा महल !
आंसू पौंछने के बजाय
मिटाओ सबब
और
वक्त रहते सीख लो
अंतस पढ़ना
जिस में
उफनता है बहुत कुछ
तुम्हारे विरुद्ध !
*कबुत्तरपनि*
आप
कबूतर की तरह
आंख मूंद कर
नहीँ बच सकते
...आपको देखना ही होगा
जो तुम्हारी ओर
बढ़ रहे हैं वे
पालतू बिल्लियोँ सरीखे
हरगिज नहीँ हैँ
तुम्हारा ये कबूतरपन
उनकी पूंजी
और
आपकी मौत का
साक्षात कारण है !
या तो आपको
दौड़ कर
बिल्लियों से
निकलना होगा
बहुत दूर
या फिर
झपटना ही होगा
पलट कर उन पर !
याद रखना
आपका कबूतरपना
जंग मेँ
हार की स्विकारोक्ति है
आपकी अपनी !
* हम बोले रोटी *
उन्होँने कहा-
देखो !
हम ने देखा
...वे खुश हुए ।
उन्होंने कहा-
सुनो !
वे बहुत खुश हुए !
उन्होंने कहा -
खड़े रहो !
हम खड़े रहे
वे बहुत ही खुश हुए ।
उन्होंने कहा-
बोलो !
हम ने कहा "रोटी" !
वे नाराज़ हुए !
बहुत नाराज हुए !!
बहुत ही नाराज़ हुए !!!
*चलो चलेँ*
समझदारोँ की भीड़ मेँ
नहीँ बचती संवेदना
बचती ही नहीं
...प्यार भरी मुस्कुराहट !
चलो वहां चलें
जहां सभी बच्चे होँ
पालनोँ मेँ झूलते
जो नाम पूछे बिना
मुस्कुराएं हमारी ओर !
उनके बीच
न ओसामा हो न ओबामा
न सैंसैक्स उठे न गिरे
न वोट डालने का झंझट
न भ्रष्टाचार न कपट !
वहां
सब के पास हो
सच मे करुण की निधि
कोई भी शीला
दीक्षित न हो
भ्रष्टाचार के खेल में !
*मेरा सपना*
रात भर जागना
इबादत ही तो है
किसी अज्ञात की
ज्ञात के लिए वरना
...जागता कौन है !
तुम अज्ञात नहीँ हो प्रभु
तुम्हारे बारे मेँ सब
सुन जान लिया है मैँने
तुमने कहा भी है
मेरे भीतर
अंश है तुम्हारा
और फिर लौटना भी है
मुझे तुम्हारे भीतर !
कौन है फिर वो
जिसके लिए
जागता हूं मैँ
रात भर ;
जरूर कोई सपना है वह
जिसके आने से
डरता हूं मैँ !
*सपने*
तेरी आंखों मेँ
मेरे सपने
मेरे सपनोँ मेँ
तेरी आंखें !
...
कभी कभी
मेरे सपनोँ से
मगर हर पल
डरता हूं
तेरी आंखोँ से !
तेरी आंख के सपने पर
मेरा नियंत्रण
हरगिज नहीँ
सपनोँ पर
तेरा नियंत्रण
बहुत डराता है
फिर भी
न जाने क्योँ
खुली आंख भी
भयानक सपना आता है !
*दीया जलाएं*
आसमान साफ
बादल और बिजलियां मौन
गतिमंद है पौन
पसरा है अंधेरोँ मेँ
...मौन सन्नाटा
मगर
निस्तेज नहीँ है सूरज
सारी गतियोँ को
कर देगा सक्रिय
अपने किसी एक फैसले से ।
आओ
हम करें प्रतिक्षा
सूरज के उगने की
तब तक
आओ जलाएं
एक एक दीया
अंधेरोँ से लड़ने के निमित
घरोँ की मुंडेर पर।
*बारिश*
मरुधरा पर
बारिश का बरसना
केवल पानी का गिरना नहीँ
बहुत कुछ बंधा है यहां ।
...
जैसे कि पेड़-पोधोँ की रंगत
मोर का नृत्य
प्रेमी वृंद के
मिलन की चाह
किसान की उम्मीद
सरकारी योजनाएं
बजट की परवाज !
बारिश सोख भी सकती है
कर्ज मेँ आकंठ डूबे नत्थू
अधबूढ़ी कंवारी बिमली के
कई सावन से टपकते आंसू ।
मरुधर जिन्हे
संजोए बैठी है
बारिश की आस मेँ
अंकुरित हो
कुंठित बीज
बचा सकते हैँ
मिटती लाज मरुधर की
बारिश मेँ !
* फिर कविता लिखेँ *
आओ
आज फिर कविता लिखें
कविता मेँ लिखेँ
प्रीत की रीत
...जो निभ नहीँ पाई
याकि निभाई नहीँ गई !
कविता मेँ आगे
रोटी लिखें
जो बनाई तो गई
मगर खिलाई नहीँ गई !
रोटी के बाद
कफन भर
कपड़ा लिखें
जो ढांप सके
अबला की अस्मत
गरीब की गरीबी !
आओ फिर तो
मकान भी लिख देँ
जिसमेँ सोए कोई
चैन की सांस ले कर
बेघर भी तो
ना मरे कोई !
चलो !
अब लिख ही देँ
सड़कोँ पर अमन
सीमाओँ पर सुलह
सियासत मेँ हया
और
जन जन मेँ ज़मीर !
आज फिर कविता लिखें
कविता मेँ लिखेँ
प्रीत की रीत
...जो निभ नहीँ पाई
याकि निभाई नहीँ गई !
कविता मेँ आगे
रोटी लिखें
जो बनाई तो गई
मगर खिलाई नहीँ गई !
रोटी के बाद
कफन भर
कपड़ा लिखें
जो ढांप सके
अबला की अस्मत
गरीब की गरीबी !
आओ फिर तो
मकान भी लिख देँ
जिसमेँ सोए कोई
चैन की सांस ले कर
बेघर भी तो
ना मरे कोई !
चलो !
अब लिख ही देँ
सड़कोँ पर अमन
सीमाओँ पर सुलह
सियासत मेँ हया
और
जन जन मेँ ज़मीर !
om ji..ek sath hi sara sagar udel diya kavitaon ka aapne..... bahut sundar kavitayen lagi...
जवाब देंहटाएंओम जी क्या कहूँ कहाँ से शुरू करूँ समझ नहीं आ रहा एक साथ इतनी कवितायेँ आप तो हमारे साथ ज्यादती कर रहे हैं. हर एक कविता को पढ़ना और उसे समझने का समय भी तो दीजिए.इतनी लाजवाब प्रस्तुति है तस्वीर भी आपने ही बनाई है किसी को रंग न भरने दें
जवाब देंहटाएंफिर किसी दिन दुबारा पढ़ने आना पड़ेगा
आभार
Bahut sundar rachnayen padhne ko mili..
जवाब देंहटाएंSaarthak rachna prastuti ke liye aabhar!