'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….

शुक्रवार, अक्टूबर 03, 2014

आहा ! संतरै री फ़ांक्यां अर पौदीनै री गोळ्यां !!

SANTRE RI FAANKYAN AR POUDEENE RI GOLYAN







प्रस्तुतकर्ता ओम पुरोहित'कागद' कोई टिप्पणी नहीं:
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जलम- ५ जुलाई १९५७, केसरीसिंहपुर (श्रीगंगानगर)
भणाई- एम.ए. (इतिहास), बी.एड. अर राजस्थानी विशारद
छप्योड़ी पोथ्यां- हिन्दी :- धूप क्यों छेड़ती है (कविता संग्रह), मीठे बोलों की शब्दपरी (बाल कविता संग्रह), आदमी नहीं है (कवितासंग्रह), मरूधरा (सम्पादित विविधा), जंगल मत काटो (बाल नाटक), रंगो की दुनिया (बाल विविधा), सीता नहीं मानी (बाल कहानी), थिरकती है तृष्णा (कविता संग्रह)
राजस्थानी :- अन्तस री बळत (कविता संग्रै), कुचरणी (कविता संग्रै),सबद गळगळा (कविता संग्रै), बात तो ही, कुचरण्यां, पचलड़ी, आंख भर चितराम।
पुरस्कार अर सनमान- राजस्थान साहित्य अकादमी रो ‘आदमी नहीं है’माथै ‘सुधीन्द्र पुरस्कार’, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर कानीं सूं ‘बात तो ही’ पर काव्य विधा रो गणेशी लाल व्यास पुरस्कार, भारतीय कला साहित्य परिषद, भादरा रो कवि गोपी कृष्ण ‘दादा’ राजस्थानी पुरस्कार, जिला प्रशासन, हनुमानगढ़ कानीं सूं केई बार सम्मानित, सरस्वती साहित्यिक संस्था (परलीका) कानीं सूं सम्मानित।
सम्प्रति- शिक्षा विभाग, राजस्थान मांय प्रधानाध्यापक।
ठावौ ठिकाणौ- २४, दुर्गा कॉलोनी, हनुमानगढ़ संगम ३३५५१२(राजस्थान)
म्हारो ब्लॉगड़ो- "कागद हो तो हर कोई बांचै…"

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ओम पुरोहित'कागद'
शब्द यात्रा करते हैं और वे इस यात्रा में संवेदना अंवेरते अपना अर्थ पाते हैं । मैं तो बस उन शब्दों का पीछा करता हूँ .... अक्षरों के बीज जाने किसने बो दिए पानी देते-देते हमने जिंदगी गुजार दी । कोरा कागद है मन मेरा और जिंदगी तलाश है कुछ शब्दों की... ओम पुरोहित ’कागद’ 09414380571
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