शुक्रवार, जून 15, 2012
बादल
यूं तो धरती के
चप्पे-चप्पे पर
पानी की
बहुत कमी थी ।
बादल मगर
वहीं बरसे
जहां पहले से
बहुत नमी थी ।
गांव-सड़क और शहर
गांव-सड़क और शहर
==============
सड़क आई शहर से
गांव का सीना चीर
निकल गई बेधड़क
ले गई गांव से
सारी मासूमियत
छोड़ गई
शहरी चालाकियां
अब गांव टसकता है
खो कर अपना गांवपन
शहर खुश है
गांव की कोख में
पहुंच गया मेरा अंश
अब खूब बढ़ेगा
शहर का वंश !
सड़क भी खुश है
गांव की गली गली
बुरी या भली
उसकी अंशी सड़कें
पसर जाएंगी
जो कहीं भी जाएं
मेरी ओर ही आएंगी !
एक ओर बैठा गांव
पूछता है खुद से
शहर हो कर मैं
कैसे बचाऊंगा
प्रीत भरी पगडंडियां
जो नहीं जाती थीं
मुझे छोड़ कर
सांझ ढलते ही
आ लगती थीं
मेरी छाती से ?
मेरे शब्द
* मेरे शब्द *
=========
मेरे बाद भी
हो नहीं जाएंगे
अनाथ मेरे शब्द
कर ही लेगा
कोई न कोई
उनका वरण
किसी अन्य के
वरण से
या कि पासंग से
अपना अर्थ
अपना वजूद
खो तो नहीं देंगे
मेरे शब्द ?
अरे !
मैं तो रुखसत पर
हो चला नास्तिक
मुझ से मिलेंगे ब्रह्मा
अगर वे ही
साक्षात हुए शब्द
तो फिर मुकरूंगा कैसे
तब पास मेरे
नहीं होगी जीभ
जो बोल जाती है
हर बार
मन की बात
शब्द ही ब्रह्म है !
भ्रम ही शब्द है !!
मुझे पता है
शब्द नहीं
मैं ही जाऊंगा
शब्द तो
आते ही रहेंगे
फिर फिर से
काल में लिपट
नए अर्थ ले कर
उन शब्दों को
सलीके से पढ़ना
उन में
मैं जरूर होऊंगा
खुद को
अनंत करता हुआ !
बुधवार, जून 06, 2012
रोटी और नेता
रोटी और नेता
=========
रोटी कैद
नेता आज़ाद
रोटी धर्मनिर्पेक्ष
नेता धर्मभीरु
रोटी का नहीं
कोई सम्प्रदाय
नेता साम्प्रदायिक
रोटी नहीं जाति की
नेता महज जाति का !
गरीब रोटी मांगता है
वोट डालता है
नेता वोट मांगता है
रोटी डालता है !
मुस्कुराहट
मुस्कुराहट
=======
छप्पन साल से
ढल रही है सांझ
हो रही है भोर
इतने सालों में
कितने कागज लिखे
कितने कागज पढ़े
ठीक से ध्यान नहीं
बस याद है
दीवार पर टंगा कैलेण्डर
जो खूंटी से उतर
पोथी पर चढ़ जाता था
बस उस दिन
एक साल बढ़ जाता था
खूंटी पर आज भी
डोरी के निशान हैं
जो उतर आए हैं
मेरे चेहरे पर ।
पिताजी ने एक बरस
कैलेण्डर का एक पन्ना
चढ़ाया था "गोदान" पर
आज भी वह
तर ओ ताजा है
जिस पर मुस्कुराता है
मधुबाला का चेहरा ।
सोचता हूं
आज न मधुबाला है
न पिताजी
फिर क्यों शेष है
वह मुस्कुराहट
क्या इसी तरह
बची रहेगी
मेरे घर
कोई मुस्कुराहट ?
हम उनके खिलौने
हम उनके खिलौने
============
किसी ने कहा
ज़िन्दगी एक खेल है
इसे खेलते रहिए
प्रतिद्वंद्वी ताक़तवर है तो
उसे झेलते रहिए
जूझते-जूझते तुम भी
इस खेल का
तरीका सीख जाओगे
फिर देखना
ज़िन्दगी जीने का
सलीका सीख जाओगे !
उन्होंने बताया
बाधाओं को निर्बाध
खिलौना बनाइए
फिर चाहो जैसे
उन से खेल जाइए !
उन से सीख पा कर
हम निकल पड़े
अपने घर से
बाधाएं तो नहीं
हम ही बने खिलौना
अब वही खेलते हैं
हम से खेल
हम आज भी
उन्हें रहे हैं झेल
वे दिन ओ दिन
निपुण खिलाड़ी हो गए
हम उनके हाथ का
दिलकश खिलौना !
आज वे कहते हैं
हर खेल में
बुद्धि और बल का
तालमेल होना चाहिए
जिस में चतुराई का
घालमेल होना चाहिए
हार-जीत का
मोह छोड़िए
खेल को
खेल की भावना से
अविचल खेलिए !
जो दबता है
दब गया तो
गया काम से
यही वह गीत है
जो सब से जादा
गाया जाता है
जो दबता है
उसे ही हर बार
दबाया जाता है !
*
आदमी का
जान न पाया
कोई भेद
धरती और आकाश में
कर के बैठ गया
अपने हाथों छेद !
ज़िन्दगी की कविता
ज़िन्दगी की कविता
=============
आज मेरा दोस्त बोला
आपकी कविता में
प्यार-रंग और रस
नहीं मिलता
जमाने भर का दर्द
उठाए फिरते हो
देखो तो सही
लोग क्या क्या लिखते हैं
पायल की झनकार
रेशमी बाल
गोरे गाल
मस्तानी चाल
बल खा कर चलती
छोरियां व गोरियां
सब होता है
उनकी कविता में
उनकी कविता
चलती नहीं दौड़ती है
तुम कहां टिकते हो ?
तुम्हारी कविता पर
लोग हो जाते हैं
गुमसुम उदास
मायूस बदहवास
मंचों के सामने
सो जाते है लोग
उनकी कविता पर
बजती हैं सीटियां
अथाह तालियां
पास पास आ जाते है
जीजे सालियां
न हों तो भी
बन जाती हैं यारियां !
तुम्हारी कविता पर
आते हैं कमेंट बीस
उनकी पर दो सो बीस
कौनसी कविता अच्छी
कौनसी बुरी है
यह तो तालियां ही
बताएंगी ना दोस्त ?
मैंने कहा
मेरे गुरुजी कहा करते हैं
ऐसे लोग कविता नहीं
कविता का नाश करते हैं
ये लोग कॉफी पी कर
पैशाब की तरह
कविता करते हैं ।
जब घर घर
चूल्हा मौन हो
तो कैसे याद आएगी
प्यार प्रीत की बातें
पायल की झनकार
गौरियों की आबरू
जब दांव पर हो तो
किस कमबख्त को
दिखेंगे पनघट-गौरियां
गाल गुलाबी
नयन शराबी
मस्तानी चाल
रेश्मी जुल्फें
घुंघराले बाल ?
मुझे तो भाई
ज़िन्दगी की
कविता लिखनी है
गन्दगी की नहीं
कविता में लिखूंगा अंगारे
जो एक न एक दिन
जरूर जला देंगे चूल्हा
ना भी जला पाए तो
उन चेहरों को
जलाने का
सामान जरूर जुटा देंगे
जो गरीब की बेबसी पर
तालियां बजाते हैं
मगर बरसों से मौन हैं
आप भी जानते हैं
वो लाचार कौन कौन हैं।
- ज़िन्दगी की कविता
============
आज मेरा दोस्त बोला
आपकी कविता में
प्यार-रंग और रस
नहीं मिलता
जमाने भर का दर्द
उठाए फिरते हो
देखो तो सही
लोग क्या क्या लिखते हैं
पायल की झनकार
रेशमी बाल
गोरे गाल
मस्तानी चाल
बल खा कर चलती
छोरियां व गोरियां
सब होता है
उनकी कविता में
उनकी कविता
चलती नहीं दौड़ती है
तुम कहां टिकते हो ?
तुम्हारी कविता पर
लोग हो जाते हैं
गुमसुम उदास
मायूस बदहवास
मंचों के सामने
सो जाते है लोग
उनकी कविता पर
बजती हैं सीटियां
अथाह तालियां
पास पास आ जाते है
जीजे सालियां
न हों तो भी
बन जाती हैं यारियां !
तुम्हारी कविता पर
आते हैं कमेंट बीस
उनकी पर दो सो बीस
कौनसी कविता अच्छी
कौनसी बुरी है
यह तो तालियां ही
बताएंगी ना दोस्त ?
मैंने कहा
मेरे गुरुजी कहा करते हैं
ऐसे लोग कविता नहीं
कविता का नाश करते हैं
ये लोग कॉफी पी कर
पैशाब की तरह
कविता करते हैं ।
जब घर घर
चूल्हा मौन हो
तो कैसे याद आएगी
प्यार प्रीत की बातें
पायल की झनकार
गौरियों की आबरू
जब दांव पर हो तो
किस कमबख्त को
दिखेंगे पनघट-गौरियां
गाल गुलाबी
नयन शराबी
मस्तानी चाल
रेश्मी जुल्फें
घुंघराले बाल ?
मुझे तो भाई
ज़िन्दगी की
कविता लिखनी है
गन्दगी की नहीं
कविता में लिखूंगा अंगारे
जो एक न एक दिन
जरूर जला देंगे चूल्हा
ना भी जला पाए तो
उन चेहरों को
जलाने का
सामान जरूर जुटा देंगे
जो गरीब की बेबसी पर
तालियां बजाते हैं
मगर बरसों से मौन हैं
आप भी जानते हैं
वो लाचार कौन कौन हैं। - भारत में कुछ खास बातें देखो
================
1-भारत में फ़ायरब्रिगेड व एम्बूलेंस से PIZZA जल्दी पहुंचता है ।
2-भारत में कार लोन 8% पर और शिक्षा पर लोन 12 % पर मिलता है ।
3-भारत में चावल 20 रुपये किलो व मोबाइल सिम फ़्री मिलती है ।
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There are
शुक्रवार, जून 01, 2012
रोटी और नेता
रोटी और नेता
=========
रोटी कैद
नेता आज़ाद
रोटी धर्मनिर्पेक्ष
नेता धर्मभीरु
रोटी का नहीं
कोई सम्प्रदाय
नेता साम्प्रदायिक
रोटी नहीं जाति की
नेता महज जाति का !
गरीब रोटी मांगता है
वोट डालता है
नेता वोट मांगता है
रोटी डालता है !
सच बता भगवान
सच बता भगवान
===========
भगवान को नहीं देखा
मंदिरों से निकल
पहाड़ों से उतर
कभी आते-जाते
भूखे-दुखी-गरीब के घर
दुखों में
आकंठ डूबा आदमी
हो असहाय जाता है
मंदिरों में
पर्वत शिखर पर
पाषाण ढले
भगवान की शरण
लौटने पर
सुख तो नहीं
दिखता है
चेहरे और पांवों पर
उतर आया
दुखों का पहाड़ ।
पहाड़ का पत्थर
तराश तराश
जिसे ने दिया
तुझ निराकार को
मनमोहन आकार
वह भूखा
तुझ को भोग
क्यों भगवान
क्यों रचता है
ऐसे योग-दुर्योग !
तेरी कृपा पाने
अपना और परिवार का
पेट काट
खरीद चढ़ाता है
रुचिकर चढ़ावा
ऐसा भोग
कैसे लगा लेता है
सच बता भगवान !
स्थाई रोजगार
दो जून रोटी की
लगा कर अरजी
रख-रख उपवास
करता है सवामणी
भरता है भक्त
तेरा पेट-पाषाण
सचा बता
कैसे खा लेता है तूं
भूखे के सामने
सवा सवा मण ?
यह भी तो बता
तुझ निराकार को
क्यों लगती है
इतनी भूख
धार कर
रूप पाषाण !
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