शुक्रवार, जून 15, 2012

बादल

यूं तो धरती के
चप्पे-चप्पे पर
पानी की
बहुत कमी थी ।
बादल मगर
वहीं बरसे
जहां पहले से
बहुत नमी थी ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में ,
    रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिए
    सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं

    प्यार की दौलत को कभी छोटा न समझना तुम
    होते है बदनसीब ,जो पाकर इसे खोते हैं

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