![](http://4.bp.blogspot.com/-rC659nh3d4w/U348ry2-coI/AAAAAAAACvg/Dmf_5H16lOA/s1600/10329210_10202758174608124_3824971360889707805_n.jpg)
![](http://1.bp.blogspot.com/-Y_62JHmcSUU/U348fIkAn4I/AAAAAAAACvY/PixbBROIjF0/s1600/10363775_10202765316626670_2962400858432218737_n.jpg)
सचल थी तब
खुद लेती थी आकार
छोटा-बडा़ भू-मंडल में
तब बोलती थी मिट्टी
दिखाती थी दिशाएं
साथ-साथ चल कर
आज जब सचल से
अचल है मिट्टी
कलाकार के हाथ लग
ले रही है पुन: आकार
बोलेगी नहीं
डोलेगी नहीं
लग कर
किसी चौक-चौराहे
भवन या दीवार में
ठिठक जाएगी
अपने होने का
महज़ देगी आभास
इसी से पा जाएगी मंज़िल
पा जाएगी दिशाएं
आज सचल पडी़
दिशा भटकी मिट्टी !
=
[ प्रख्यात चित्रकार एवम
मूर्तिकार भाई रामकिशन अडिग
[ RAM KISHAN ADIG ]
द्वारा बनाई जा रही मूर्तियों को देखते हुए ]