'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, अप्रैल 01, 2012
वक्त के साथ
{>+<} वक्त के साथ {>+<}
दीवार पर टंगी
मेरी ही तस्वीर से
अब मिलती नहीं
मेरी ही सूरत
तस्वीर नहीं
मैं ही बदला हूं
वक्त के साथ
जब की शोर है बाहर ;
सूरत बदलनी चाहिए !
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