सोमवार, अप्रैल 16, 2012

एक हिन्दी कविता

0000 पेड़ के सवाल 0000
 
 घने जंगल में
उगा पौधा
पेड़ बना
गहराया-फला
चढ़ गया
सब की आंख
हर कोई
पास आया
पूछ बढ़ी तो
काट गिराया !

पेड़ से जादा मोह
फूल-फल
छाल-पत्ती
और
लकड़ी को मिला
पेड़ तो बस
अपनी खूबसूरती
काबलियत के लिए
मारा गया ।

कितने पक्षी
कीट-पतंगे
लेते-पाते हैं पनाह
कुछ नहीं सोचा गया
इंसानो द्वारा पेड़
अपने हित में
आंख मींच नोचा गया ।

पेड़ की हत्या पर
कोई बैठक न हुई
न तीये की
न पांचे की
न हुआ द्वादशा
जबकि किताबों में
हरेक ने पढ़ा था
पेड़ भी होता है
इंसान सा सजीव !

रात को खाट से
घर से निकलते वक्त
दरवाजे-खिड़कियों से
भोजन के वक्त
चकले-बेलन से
दिन में
मेज-कुर्सी से
सुनाई देते हैं मुझे
सिसकियों के बीच
पेड़ के सवाल
क्यों मारा गया मुजे
क्या था कसूर मेरा ?

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