सोमवार, अप्रैल 16, 2012

एक हिन्दी कविता

बड़ी थी प्यास
*=*=*=*=*=*

मृग था चंचल
दौड़ा स्वछंद
यत्र तत्र सर्वत्र
असीम थार में
पानी न था कहीं
प्यास थी आकंठ
प्यास ही ने उकेरा
लबालब सागर
मृगजल भरा
थिरकते थार में।

भरी दोपहरी
रचा पानी
उभरा अक्स
थार में
ले कर मृगतृष्णा
जिसकी चाहत
थमे दृग पग
भटक मरा मृग !

थार से
बड़ी थी प्यास
मरी नहीं
रही अटल
मृगी की आंख
थार में थिर !

4 टिप्‍पणियां:

  1. Chamatkar karti rachana ! Thar kee pyas, trishna aur mrig, dhoondhte drig, digaantar magar kewal pyas, jal kewal drig me... WAH sa Wah !
    aapki is kavita me kai alankarn shobhit ho rahe hain.. agar koi is rachana kee gahrai me utare to samajhe Thar kee aakanth doobi pyas ko.
    jitna is rachana ko padha, samajha; utna hee tript hokar bhee pyaasa rahaa !
    Sadhuwad sa !!
    naman !!

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  2. मृग की अनुकम्पा कहूँ या मृगतृष्णा .............बहुत अच्छी तरह से व्यक्त किये है भाव मृग के द्वारा .......................

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  3. मृग की अनुकंपा कहूँ या मृगतृष्णा ,,,,,,,,,,,,,बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति'

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