मंगलवार, सितंबर 25, 2012

मसला रोटी का था


भूखा था बच्चा
रोया-चिल्लाया
देखा ना गया तो
मां के मुख से
बात फिसल गई
मसला रोटी का था
घर से मचल कर

बाहर निकल गई ।

घर से निकली

आई सड़क पर
आए नेता न्यारे-न्यारे
लग गया मजमा
गड़ गए तम्बू
धरना चालू
हो गया चंदा
चल गया धंधा
लग गए नारे
प्यारे - प्यारे-
"रोजी-रोटी दे न सके
वो सरकार निकम्मी है
जो सरकार निकम्मी है
वो सरकार बदलनी है"

भूखा नत्थू

बैठा धरने
अनिश्चितकाल तक
भूखा मरने
कोई न उठ कर
ऐसा आया
जो बोले
मैं रोटी लाया
जो भी आया
नारे लाया
लाल-हरे
नीले-पीले
केसरिया-तिरंगे
झंडे लाया !

अखबारों में

छप गई खबरें
खबरों की खातिर
सब गर्जन आए
अगले ही दिन
नेताओं के वर्जन आए
पढ़-पढ़ नेता गले मिलें
और हाथ मिलाएं !

नत्थू बोला

इस खर्चे से
रोटी देते
काहे इतनी तुम
तोहमत करते
उठा रहा हूं
अपना धरना
धरने पर भी
जब भूखा मरना
फिर इस धरने का
क्या करना
मेरी भूख बहाना है
तुम को संसद जाना है ?

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