बुधवार, अक्तूबर 31, 2012

आग मत देख


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मेरे गीतों में    अनुराग मत देख ।
दर्द में रपटी है   ये राग मत देख ।।
आंखों से   बहते हैं    शीतल झरने ।
दिल मे दहकी है वो आग मत देख ।।
आदम के जाए भर हैं    ये आदमीं ।
दिल में बैठे हैं    वो नाग मत देख ।।
वो बुत देख पुजवा रहा है खुद को ।
बदले हैं पत्थरों के भाग मत देख ।।
अपनी ही चादर को रख पाक साफ ।
उनके दामन पर हैं दाग मत देख ।।

7 टिप्‍पणियां:

  1. क्योंकि देखने पर सरे दृश्य,अर्थ बदल जायेंगे

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  2. आदम के जाए भर हैं ये आदमीं ।
    दिल में बैठे हैं वो नाग मत देख
    जवाब नहीं आपका पुरोहित जी , लाजवाब

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  3. बेहतरीन
    वो बुत देख पुजवा रहा है खुद को ।
    बदले हैं पत्थरों के भाग मत देख ।।
    अपनी ही चादर को रख पाक साफ ।
    उनके दामन पर हैं दाग मत देख ।।
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  4. अपनी ही चादर को रख पाक साफ
    उनके दामन पर हैं दाग मत देख

    वाऽह ! क्या बात है !
    बहुत बढ़िया !
    बहुत सुंदर !
    हमेशा की ही तरह …

    आदरणीय ओम पुरोहित'कागद'
    जी

    सादर प्रणाम !

    आपकी रचनाओं के लिए क्या कहूं …
    हर रचना सुंदर रचना !
    अप्रतिम ! अद्वितीय ! अलौकिक !


    :)

    शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं। धन्यवाद।

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  6. आदम के जाए भर हैं ये आदमीं ।
    दिल में बैठे हैं वो नाग मत देख

    आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।

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