रविवार, अक्तूबर 21, 2012

अपने दिनों की बात


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वो कहा करते थे
बहुत सुन्दर हैं
तुम्हारे दांत
अनार के दानों सरिखे
मोती से बिखर जाते हैं
चारों दिशाओं में
जब खिलखिलाती हो
सुनाई देती है
तुम्हारी हसी की खनक
मैं मुस्कुरा कर कहती
कितना झूठ बौलते हो
देखो तो
आज चबाए नहीं जाते
रोटी के दो कोर
दादी बता रही थी
अपनी सहेली को
अपने दिनों की बात !

पास ही बैठा
ठहाका मार कर हसा
उसका पोता
बोला-
बुड्ढ़े भी देखो
कितना झूठ बोलते हैं !

मुस्कुराती हुई
दादी ढूंढ़ने लगी
पोते के चेहरे में
अपना और "उनका" चेहरा
दादी खो गई
और गहरे अतीत में !

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