शुक्रवार, मार्च 29, 2013

*थाली का चक्कर *



मेरे पैदा होते ही
घर में जो बजी थी थाली
आज तलक
उसी थाली के चक्कर में
फंसा हुआ हूं
कभी भर जाती है
कभी रह जाती है खाली

उस दिन
शायद यह संकेत था
आज के बाद
हर रोज बजेगी थाली
रोटियां डाल कर
इसे करना होगा मौन ।

पहली बार
जब बजी थी थाली
तब पूरे मोहल्ले के
कान खड़े हुए थे
आज जब भी घर में
बजती है खाली थाली
मेरे अकेले के
खड़े होते हैं कान !

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