सत्ता के गलियारों में
घूमते-गूंजते शब्द
थाम कर अर्थाने
वह बहुत भागा
फिर भी
अभागा ही रहा !
वह जितना भागा
सफर उतना ही बढ़ा
दिन बदले
अमावस से पूनम हो गई
मगर उसका चांद
फीका ही रहा
अगस्त से जनवरी आई
पोथा रच गई
सुख नहीं रचे
गिरगिट की तरह
शब्द भी
बदलने लगे रंग
अब देते नहीं वही अर्थ
जिनके लिए
उन्हे रचा गया था !
उसे चाहिए वही शब्द
जिन से भगतसिंह ने
इंकलाब लिखा
सुभाष ने लिखा
जय हिन्द !
उसकी तलाश जारी है
हाथ भी आए हैं कुछ शब्द
जिन्हे वह अर्था ही लेता
जो निकल गए छिटक कर
उस से बहुत दूर ;
कुछ शब्दकोश में
कुछ संविधान की
जटिल परिभाषाओं मेँ
वह जान पाता
तब तक उनके
हेतुक परन्तुक आ खड़े हुए
जो थे किसी और के लिए !
वह सोचता है
मेरे अलावा
और कौन है
जिनके लिए
घड़े जाते हैं
अलग शब्द
जो सदैव रहते हैं
उन "और" की पहुंच में ।
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