'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
शुक्रवार, जून 21, 2013
रेत की पीर
दिन भर
तपती रेत
खूब रोती होगी
रात के सन्नाटे में
बुक्का फाड़
तभी तो
हो लेती है
भोर में
शीतल
शांत
धीर
रेत की
अनकथ पीर !
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