शुक्रवार, जून 21, 2013

तल्ख़ी रख कहन में


बंद कर
बर्फ का व्यपार
बहुत नमी है वातावरण में
जिसका पा कर पोषण
चौतरफा झाड़ियां 
बढ़ जो गई हैं आज
जला उनको
वरना ये लील जाएंगी
एक दिन
झुग्गियां तुम्हारी !

धरा की मौन स्वीकृति
देती है अवसर
बर्फ को जमने का
तुम मत दो
ज़हन में जो जम गई बर्फ
जम जाएगा तुम्हारा "मैं"
जो पहचान है तुम्हारी
अपनी पहचान के लिए तो उठ !

मुठ्ठियों में
हिम्मत रख
अंगारे रख ज़हन में
तल्खी रख कहन में
बर्फ पिघल जाएगी
जल उठेगा अलाव
समझ
इस सर्द मे
अलाव जलाना
कितना जरूरी है ।

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