बंद कर
बर्फ का व्यपार
बहुत नमी है वातावरण में
जिसका पा कर पोषण
चौतरफा झाड़ियां
बढ़ जो गई हैं आज
जला उनको
वरना ये लील जाएंगी
एक दिन
झुग्गियां तुम्हारी !
धरा की मौन स्वीकृति
देती है अवसर
बर्फ को जमने का
तुम मत दो
ज़हन में जो जम गई बर्फ
जम जाएगा तुम्हारा "मैं"
जो पहचान है तुम्हारी
अपनी पहचान के लिए तो उठ !
मुठ्ठियों में
हिम्मत रख
अंगारे रख ज़हन में
तल्खी रख कहन में
बर्फ पिघल जाएगी
जल उठेगा अलाव
समझ
इस सर्द मे
अलाव जलाना
कितना जरूरी है ।
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