'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
सोमवार, जुलाई 29, 2013
*निमिष भर समय*
असीम था समय
आदि-अनादि काल से
अखूट था
आदि से अंत तक
अवतारों तक से
खर्च तो हुआ ही नहीं
सृष्टि से पहले भी था
आज मगर नहीं है
किसी के पास
निमिष भर समय
गया कहां आखिर
यह अकूत खजाना
या फिर
मिथ्या हैं घोषणाएं
मन के भरमाए
कपटी मानवों की !
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