रविवार, मार्च 30, 2014

बोलो ; चाहे मौन रहो

बहुत दिन हुए
तुम छोड़ गए 
चलो आज तुम्हें
आया हुआ मान कर
हमारी स्मृतियों से 
तुम्हारा स्वागत करुं !

तुम पास नहीं हो
फिर भी
तुम्हारे पास होने का
ऐहसास कर लूं
तुम हाथ न आओ
तो भी
तुम्हें बांहों में भर लूं !

तुम कुछ मत देखो
फिर भी मैं तुम्हें
देखता हुआ देखूं
तुम बोलो नहीं
फिर भी मैं तुम्हें
बोलता हुआ सुनूं !

तुम चाहे मौन रहो
मगर एक बार फिर
उसी तरह पुकार लो
जैसे पुकारा था
भीगने से बचने के लिए
माघ की बरसात में !

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