सत्य का स्थान
लेता है असत्य
सत्य का अंत ही
होता है असत्य
और फिर
असत्य का अंत ही
बनता है नया सत्य ।
सत्य को कर परास्त
असत्य ही
हो जाता है स्थापित
एक नए सत्य के रूप में
आज जो असत्य है
वही है कल का सत्य
और जो आज सत्य है
वही होगा कल का असत्य ।
स्थापित असत्य को
धकेल-पछाड़ कर ही
नया सत्य
होता है स्थापित
जो चलता है
कुछ समय के लिए
फिर हो जाता है असत्य
किसी नए सत्य के लिए ।
किस के अधीन है सत्य
धनबल-भुजबल
वाचालों की चाल
या फिर
सत्ता के खूंटे बंधा
सामर्थ्य सापेक्ष भी
कौन जाने
सत्य मगर है
समय सापेक्ष ही !
लेता है असत्य
सत्य का अंत ही
होता है असत्य
और फिर
असत्य का अंत ही
बनता है नया सत्य ।
सत्य को कर परास्त
असत्य ही
हो जाता है स्थापित
एक नए सत्य के रूप में
आज जो असत्य है
वही है कल का सत्य
और जो आज सत्य है
वही होगा कल का असत्य ।
स्थापित असत्य को
धकेल-पछाड़ कर ही
नया सत्य
होता है स्थापित
जो चलता है
कुछ समय के लिए
फिर हो जाता है असत्य
किसी नए सत्य के लिए ।
किस के अधीन है सत्य
धनबल-भुजबल
वाचालों की चाल
या फिर
सत्ता के खूंटे बंधा
सामर्थ्य सापेक्ष भी
कौन जाने
सत्य मगर है
समय सापेक्ष ही !
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