शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

*मां के साथ*

रात रात भर
सोते हुए जागना
जागते हुए सोना
कोई बीमारी नहीं
लाचारी भी है
इश्क-रिस्क
भूख-भय 
इल्म और जुल्म
सबब भी हैँ
मगर
सोने की नसीहत
बांटने वाले लोग
मां तो नहीं होते
जो सुला दें
हमारे दुखों का
स्वयं वरण कर !

निःर्थक तो नहीं होतीं
मां की लोरियां
मीठी थपकियां
या फिर
थके हारे माथे पर
झुर्रियों सने हाथ का
ममता भरा
मनोचिकत्सकीय स्पर्श
जो कर देता है
हमारी वेदनाओँ को
अतंतस्थ तक परास्त !

मां के साथ
देर तक जागना


जोड़ देता है
तीनोँ काल से
विरासत
संस्कृति
इतिहास और परम्परा से
मां ही सुलाती है
सुखों की शैया पर
वही नहालाती है
शांति के सागर मेँ !

मां !
तुम मानसरोवर हो
जहां मिलते हैं मुझे मोती
तुम आश्रम भी हो
जहां मैं बांचता हूं
भव की पोथी !

सच मेँ मां
तुम्हारा स्मरण भर
मुझे कर देता है
भव बाधाओं के पाश से
मुक्त उन्मुक्त !

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