शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

*दर्द और आंसू*

न जाने कब से
क़ैद था सीने में
तुम्हें देख कर
वो दर्द मचल गया 
बर्फ की गांठ सा जमा था
दिल में न जाने कब से
यादों की तपिश में
वो हिमखंड पिघल गया ।

कब रुका वो नादान
मेरी आंख में देर तलक
स्मृतियों मेँ झांक मचल गया
रूठ कर बच्चे की तरह
आंख के घर से निकल गया 

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