शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

मिटाओ सबब

आंख के आंसू
पौंछ भी लूं
भीतर के आंसू तो
कर ही देँगे नम 
यह नमी
दिखेगी नहीँ
मेरा अंतस मगर
जला कर 
कर देगी राख
यह राख
एक दिन
ढांप ही लेगी
तुम्हारा महल !

आंसू पौंछने के बजाय
मिटाओ सबब
और
वक्त रहते सीख लो
अंतस पढ़ना
जिस में
उफनता है बहुत कुछ
तुम्हारे विरुद्ध !

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