ओम पुरोहित "कागद" की सात हिन्दी कविताएं
सात अकाल चित्र
1.
पपीहा थार में
दूर-दूर तक
कहीं भी नहीं दिखता
बादल का कोई बीज
बोले भी तो
किस बिना पर
पपीहा थार में !
2.
राजधानी में
वह
आया था गांव से
देश की राजधानी में
मुंह अंधेरी भोर में
ताजा छपे अखबार सा
अंग-अंग पर
सुकाल से
अकाल तक के
तमाम समाचार लिए
पड़ा है आज भी
ज्यों पड़ा हो
हिन्दी अखबार
केरल के किसी देहात में ।
3.
सुखिया
सुकाल से
अकाल तक का
जीवंत वृतांत है
गांव से आया सुखिया ।
पड़ा है
शहर में फुटपाथ पर
अपने परिवार के संग
ज्यों पड़ा हो
एक कविता संग्रह अनछुआ
किसी पुस्तकालय में ।
4.
छापता है पगचिन्ह
सांझ है
भूख है
प्यास है
फिर भी गांव व्यस्त है
सिर पर ऊंच कर घर
डाल रहा है उंचाला
छापता है पग-चिन्ह
जो
मिट ही जाएंगे कल भोर में
नहीं चाहता
कोई चले इन पर
मगर
भयभीत है;
खोज ही लेंगे कल वे
ऐसे ही अकाल में
जैसे खोज लिए हैं आज
उसने
अपने बडेरों के पग-चिन्ह ।
5.
कहीं नहीं है खेतरपाल
सूख गई
वह खेजड़ी
जिस में निवास था
खेतरपाल का
जिस पर धापी ने
चढ़ाया था अकाल को भगाने
सवा सेर तेल
और
इक्कीस का प्रसाद ।
ज्यों का त्यों है अकाल
मगर
खेजड़ी के तने पर
आज भी चिकनाई है
चींटे अभी भी घूमते हैं
सूंघते हैं
प्रसाद की सौरम
परन्तु
नहीं है आस-पास
कहीं नहीं है खेतरपाल ।
6.
बूढ़ा नथमल
जोते-जोत हल
तन से
बरसाता है जल
बूढ़ा नथमल
ताकता है आकाश
जहां
दूर-दूर तक
पाता नहीं जल
बस
रह जाता है
जल-जल,
नथमल ।
7.
भूख है यहां भी
अकाल है
नहीं है आस जीवन की
पलायन कर गया है
समूचा गांव ।
मोर
आज भी बैठा है
ठूंठ खेजड़े पर
छिपकली भी रेंगती है
दीवारों पर
और
वैसे ही उड़-उड़ आती है
चिड़िया कुएं की पाळ पर ।
भूख यहां भी है
है मगर देखने की
एक आदम चेहरा ।
waah !
जवाब देंहटाएंbahut sundar !aapki pahale ki bhi kavitayen padhi aap bahut achchha likhate hain
जवाब देंहटाएंआदरजोग ओम जी की सातों रचनाएं बहुत रूचि. मरुधर में अकाल के सातों चित्र सृजन रुपी इन्द्रधनुष के सात रंगों से युक्त यथार्थ और मर्मस्पर्शी हैं. खास कर 'कहीं नहीं है खेतरपाल' रचना ने बहुत प्रभावित किया और बरबस ही एक चित्र आँखों में तैर गया. सभी रचनाएं बहुत भावुक कर देने वाली और संवेदनशील हैं. साधुवाद !
जवाब देंहटाएंजमीन से जुडी कवितायें ! इस भागते समय में अनछुए पहलुओं पर नया बिम्ब रच रही हैं आपकी कवितायें ! बहुत सुंदर ! नए कवियों के लिए प्रेरणा !
जवाब देंहटाएंवैसे तो सभी कवितायें एक से बड़कर एक हैं....
जवाब देंहटाएंलेकिन
'राजधानी में'तो क्या बात है...दिल को छुई ही नहीं ....दिल में उतरती चली गई ।
ओम जी,
मैने 'हिन्दी हाइकु' बलॉग बनाया है...
आप के 'हाइकु' का इन्तजार रहेगा ।
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waah ....
जवाब देंहटाएंbahut sundar......
सूने पड़े आकाश में
जवाब देंहटाएंदूर-दूर तक
कहीं भी नहीं दिखता
बादल का कोई बीज
बोले भी तो
किस बिना पर
पपीहा थार में !
वाह ....बहुत सुंदर......!!
ओम जी आपकी कविताएं अच्छी लगीं। खासकर वह जिसमें हिन्दी अखबार केरल के किसी गांव में । पहली कविता भी गहरे अर्थ सामने रखती है।
जवाब देंहटाएंपपीहा थार में...से लेकर.... भूख है यहां भी..तक सातों कविताएं क्या...थिरकती है तृष्णा पुस्तक बढिया है ॐ जी
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंसुकाल से अकाल काल जयी रचनाएं
आपका ब्लॉग लोड होने में बहुत वक़्त लेता है ,
कुछ उपाय करें ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
सहज पर सार्थक रचनाये ,यथार्थ भाव ,अच्छा लगा पद कर ..
जवाब देंहटाएंaadarniy sir,sari rachnayain ek se badh kar ek.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बहुत सुंदर .
poonam