बात तो ही (राजस्थानी कविता संग्रह)
हिन्दी अनुवाद-अंकिता पुरोहित ‘कागदांश’
१.पालते हैं धर्म
गांव में
अकाल है
साक्षात शिव रूप
नमस्कार है !
मेहमान होता है
भगवान
भूख पधारी है
पसरी है
आंगन में
स्वागत है !
दादा जी का अस्थिपंजर
खुराक के बिना
सर्दियों में
करता है नृत्य
और साथ देते हैं
पिताजी भी !
पोतों की
अकाल मृत्यु पर
दादी की आंखें
बहाती हैं
गंगा-यमुना
झर-झर
दादी नहाती है
हमेशा
करती है कीर्तन ।
मां के घुटने
गाते हैं
हरीभजन
बहुएं
अलापती हैं संग में
हमेशा ।
पूरे घर में
बरसात की
वंदना है
भावना है
नहीं मरे
कोई जीव-जन्तु
अन्न-पानी के अभाव में।
रखते हैं मर्यादा
पालते हैं धर्म !
२.मन करता है
मन
कुछ न कुछ
करता ही रहता है ।
मन करता है
पंखुड़ी बनूं
कली बनूंड
फल बनूं
अथवा
वह टहनी बनूं
जिस पर लगते हैं
पंखुड़ी
कली
फ़ल ।
और फ़िर करता है
बनूं भंवरा
सूंघूं फ़ूल
बेअंत
कभी करता है
बनूं रुत
केवल बसंत !
३.चांद नहीं दिखाया
उन्होंने
बार-बार
हमें
चांद पर
ले जाने के
स्वपन दिखाए
परन्तु
एक बार भी
चांद नहीं दिखाया ।
उस समय तक
हम
जिसको उन्होंने
चांद कहा
उसको ही
चांद कहते रहे ।
जिस दिन
हमारे ऊपर
चांद निकला
उस दिन
घर से बाहर
निकलने की
सख्त मनाही थी
४.लोकतंत्र
रामलाल !
तूं गाय जैसा आदमी है
इस लिए
घास खा !
वे बेचारे
शेर जैसे आदमी हैं
मांस खाएंगे
तेरा !
देखना !
भूखा न सोए
लोकतंत्र में ।
५.केवल मैं जानता हूं
अपनी
ज़मीन से
जुड़ा रहना
कितना जरूरी है
आप जानते हैं
या मैं जानता हूं
परन्तु
मेरे पैरों तले
ज़मीन कितनी
चिकनी है
फ़िसलने का
खतरा कितना है
यह केवल मैं जानता हूं
आप कहां जानते हैं
६.अमानत
पागल थे
हमारे पुरखे
जो दे गए
भूख के कारण
अपनी कंठी-माला ।
दंड़वत प्रणाम
ठाकुर जी !
लौटा दो
हमारे पुरखों की
वह अमानत
उसी के बल
हो सकता है
पेट पालने का
कोई जुगाड़ !
७. बात तो थी
चिड़ी बोली
चड़-चड़ !
चिड़ा बोला
चूं !
चिड़ी बोली
चूं-चूं !
चिड़ा बोला
चीं !
चिड़ी बोली
चीं-चीं !
दोनों उड गए
एक साथ
फ़ुर्र
बात तो थी।
रामलाल !
जवाब देंहटाएंतूं गाय जैसा आदमी है
इस लिए
घास खा !
वे बेचारे
शेर जैसे आदमी हैं
मांस खाएंगे
तेरा !
देखना !
भूखा न सोए
लोकतंत्र में ।........ये कविता बताती है कि...प्रत्येक कविता पह्ले एक सशक्त वक्तव्य होती है...सभी कविताएं अंकिता ने कमाल अनुदित की हैं..पिता तो है ही ..पुत्री भी शुभकामनाओं की हकदार है.
...दोनों उड गए
जवाब देंहटाएंएक साथ
फ़ुर्र
बात तो थी
बहुत बात है आपकी हर कविता में ! आपको दिल से बधाई !
बहुत खूब----- मूल जैसा अनुवाद।
जवाब देंहटाएंसर आपकी कविता में जीवन के सभी चित्र सारे सपने, मिल जाते हैं! ए़क ओर जहाँ आम आदमी की सबसे बड़ी हकीकत .. भूख, अकाल है वहीँ.. गहरी व्यंग वाली कविता है रामलाल .. सचमुच गाय होना अभिशाप है ... चिड़ा और छिड़ी का फुर्र होना अलग बिम्ब पैदा करती है... साथ में जो उत्क्रिस्थ बात है वो यह की ये कवितायेँ अनुवाद हैं जरुर लेकिन लगती नहीं हैं... कविता की आत्मा वहीँ है
जवाब देंहटाएंबधाई....पिता संग पुत्री को भी...
जवाब देंहटाएंघुट्टी पिलाई जा रही है...
गंभीर होते हुए सभी कविताएं सहज और सरल हैं.आम आदमी की भाषा में उनकी ही समस्याएं इंगित करती सशक्त कविताएं.
जवाब देंहटाएंअपनी
ज़मीन से
जुड़ा रहना
कितना जरूरी है
आप जानते हैं
या मैं जानता हूं
परन्तु
मेरे पैरों तले
ज़मीन कितनी
चिकनी है
फ़िसलने का
खतरा कितना है
यह केवल मैं जानता हूं
आप कहां जानते हैं
एक से एक बढकर कविता है। बधाई....
जवाब देंहटाएंकविता.....एक से एक बढकर...
जवाब देंहटाएंसरल हैं भाषा में......
बधाई..... दिल से !
अंकिता को भी बधाई !!!
SAAREE KEE SAAREE KAVITAAYEN MUN KO BHAA GAYEE
जवाब देंहटाएंHAIN.BHAASHA PAR AAPKAA KHOOB ADHIKAAR HAI.LAGAA
HEE NAHIN KI ANUWAAD HAI.BADHAAEE AUR SHUBH
KAMNA.
बेहतरीन रचनाएँ!
जवाब देंहटाएंरचनाएँ एक से एक बढकर...
जवाब देंहटाएं....पूरे घर में
जवाब देंहटाएंबरसात की
वंदना है
भावना है
नहीं मरे
कोई जीव-जन्तु
अन्न-पानी के अभाव में।
रखते हैं मर्यादा
पालते हैं धर्म !...
राजस्थानी कविताओं का बहुत ही सुन्दर अनुवाद किया है..सभी कवितायेँ जीवंत चितराम हैं..अंकिता और ॐ जी को बहुत बहुत बधाई..
सार्थक प्रस्तुति- साधुवाद!
जवाब देंहटाएंसद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
अब आपके बीच आ चूका है ब्लॉग जगत का नया अवतार www.apnivani.com
जवाब देंहटाएंआप अपना एकाउंट बना कर अपने ब्लॉग, फोटो, विडियो, ऑडियो, टिप्पड़ी लोगो के बीच शेयर कर सकते हैं !
इसके साथ ही www.apnivani.com पहली हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट है| जन्हा आपको प्रोफाइल बनाने की सारी सुविधाएँ मिलेंगी!
धनयवाद ...
आप की अपनी www.apnivani.com