सोमवार, सितंबर 20, 2010
पिताश्री को समर्पित कविताएं
पिताश्री को समर्पित कविताएं
मेरे पिताश्री श्री रिद्धकरण पुरोहित
का 92 वर्ष की वय में 5 सितम्बर 2010 को
रात्रि 7.30 बजे देहावसान हो गया ।
वे राजस्थानी लोकसाहित्य के मर्मज्ञ थे ।
स्वाध्याय उनकी दिनचर्या का अहम हिस्सा था ।
हिन्दी की स्थापना तथा राजस्थानी भाषा को
आठवीं अनुसूची मे शामिल करने की
मुहिम से वे गहरा जुडा़व रखते थे ।
उनकी चिरस्थाई स्मृति को समर्पित है
मेरी तीन राजस्थानी कविताएं
जिनका अनुवाद मेरी पुत्री
अंकिता पुरोहित ने किया है !
पिताजी-१
कितनी कम थीं
जरूरतें !
फ़टे कपड़ो में भी
जी लेते थे हम
सालों-साल
बिना नहाए
साबुन से !
कितनी आसानी से
बताते हैं पिताजी
बदहाली को
खुशहाली में
बदल कर !
पिताजी-२
आजकल के नौजवान
हमेशा
थमाए रखते हैं
अपनी कलाई
नाडी़ वैद्य के हाथों में !
हमारे वक्त में
ऐसा नहीं था
बला के दिलेर होते थे
हम
जब जवान होते थे !
यह बताते हैं पिताजी
दमें की बलगम को
कंठ में उतार कर !
बडी़ माता के कारण
फ़ूटी आंख से
बहते पानी को पौंछ
घुटनों पर
हथेलियां रख
उठते हुए !
पिताजी-३
रिटायरमेंट के
बीस साल बाद भी
नौकरी पर
कार्यग्रहण करने के दिन
खरीदी बाईसाइकिल को
झाड़ते-पूंछ्ते रहते हैं पिताजी ।
यात्रा पर निकलते वक्त
सौंप-समझा
ताकीद कर
जाते हैं
बूढी मां को ।
कभी-कभी
बाज़ार भी ले जाते हैं
हाथों में थाम कर
लौटते हैं
हरी सब्जियों से भरे
थेले को
हैंडल पर लटकाए
पैदल-पैदल
धीरे-धीरे !
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परम श्रद्धेय श्री रिद्धकरण जी को और उनके व्यक्तित्व और कृतत्व को हार्दिक नमन ! भावभीनी श्रद्धांजली..!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, सशक्त और मुकम्मल रचनाएँ..! अंकिता को भी बधाई इतना सुन्दर अनुवाद करने हेतु..!
क्या प्रतिक्रिया करुं इन पर....ॐ जी...मार्मिक सृजन...भावपूर्ण अनुवाद...जैसे हर एक ’जी’ ले अपने पिता को...इन्हीं कविताओं में...मैने भी अपने पिता को इसी रूप में..इसी तरह...अपने जीवन में भी जिया ....और अब..इन कविताओं में.
जवाब देंहटाएंआदरणीय ओम कागद जी
जवाब देंहटाएंआपके स्वर्गीय पिताजी श्रद्धेय श्री रिद्धकरण जी को श्रद्धासुमन अर्पित हैं ।
सादर
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आपके पिताजी को नमन ..और कविताओं से ज्यादा परिचय मिला ..आभार
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचनाएँ हैं...निशब्द कर गयीं...शब्द और भावों का अभूतपूर्व संगम है इन रचनाओं में...पिता श्री की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना रत हूँ...
जवाब देंहटाएंनीरज
बड़ा दुःख हुआ ओम जी.................
जवाब देंहटाएंईश्वर उनकी आत्मा को परमशान्ति प्रदान करे
विनम्र श्रद्धांजली !
_________आपकी कवितायें बड़ी मार्मिक और अद्भुत हैं ............
ईश्वर उनकी आत्मा को परमशान्ति प्रदान करे....आपके स्वर्गीय पिताजी श्रद्धेय श्री रिद्धकरण जी को श्रद्धासुमन अर्पित हैं ।
जवाब देंहटाएं.....
ओम जी तीन में से आखिरी कविता बहुत मार्मिक है और गहरे तक उतर जाती है। अनुवाद बहुत अच्छा है। अंकिता किस वय की हैं मुझे पता नहीं। पर कविता की समझ उन्हें है यह समझ आया।
जवाब देंहटाएंपहली और दूसरी थोड़ा संपादन और कसाव मांगती है।
पिताजी को इस तरह याद करना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
पिता !तुम्हारा
जवाब देंहटाएंगरिमा मय व्यक्तित्व
अब भी सीलन भरे
कमरे कि दीवारों में
गर्माहट प्रदान करता है ''
परम श्रेदेय को शत शत नमन !
apne khoob achchi sradhajali di hai pita ko ,wah.
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