चार हिन्दी कविताएं
कल्पना
मैं कल्पना
बहुत कम लोग दे पाते
आकार मुझे
मैं अनघड़पत्थर सी
कष्टियाते हवा-पानी के
तीव्र वेग से पातीघुमड़ीले आकार
किसी को भाते
किसी को सुहाते
कुछ करते स्पर्श
कुछ रोंद कर
गुजर जाते
लेकिन
ले जाते
मस्तिष्क की डोली में
अपने साथ
(2)
हवा
हवा पास से
निकल जाए
गुनगुनाती
महक चुराती
पुहुप का दामन
कुंवारा कब रह पाता
दौड़ता क्षण
फिर थम जाता
हवा का पता उसे
कौन बताता
(3)
आस
हम ने जो पेड़ लगाया था
धरा पर
वो बाते करता है
हवा से
हवा जो निकल जाती है
छू कर
घर हमारा
पूछती है पता तुम्हारा
फिर न जाने
क्या पा कर
छुप जाती हैंदौड़ कर
उसी पेड़ के पत्तों में
हमारी आस
फिर कुंवारी रह जाती है।
(4)
मौन
तुम पेड़ को
अपनी नज़र से देखो
यह अधिकार
तुम्हारा अपना
पेड़ को झाड़ कहो
शायद यह अधिकार
तुम्हारा अपना नहीं।
तुम सुरज को सुरज
न कह सको तो
शायद मौन रह कर
बेहत्तर उत्तर हो
ढूढ़ सकते हो
जैसे एक कर
मौन रह कर
जान जाती है
कायनात की सारी हकीकत।
हमेशा की तरह बेहतरीन कविताएँ!
जवाब देंहटाएंदीपावली की ढेर सारी शुभकामना!
बहुत सुंदर रचना, आप को दिपावली की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंसराहनीय लेखन........
जवाब देंहटाएं+++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपके, हेतु ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
सराहनीय लेखन........
जवाब देंहटाएं+++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपके, हेतु ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
pranam !
जवाब देंहटाएंachchi kavitae hum tak rakhne k liye aap ki lekhni ko sadhuwad .
saadar
Bahut sundar prastuti..
जवाब देंहटाएंbahut sukhad laga aapke blog par aakar....
Deepwali kee haardik shubhkamnayen
बेहतरीन कविताएँ!
जवाब देंहटाएं2/10
जवाब देंहटाएंबरखुदार माफ़ करियेगा
फिलहाल एक नजर में आपकी रचनाये समझ पाने में असमर्थ हूँ.
लोगों ने तारीफ़ की है तो अवश्य कुछ बात होगी. पुनः आकर देखूंगा.
आदरणीय, मेरे ब्लॉग पर आने और मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए आभार. हम भी आपके धारदार लेखन को हमेशा पढ़ते हैं और उससे प्रेरणा लेते हैं . गूढ़ अर्थ लिए आपकी कवितायेँ सरस हैं.
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