क्या पढे़गा भला कोई \
आंखों से एक सपना खो कर आया हूं ।
अपनों में एक अपना खो कर आया हूं ॥
कांधे पर मेरे हाथ मत रख ऐ रकीब ।
यह लाश बडी़ दूर से ढो कर लाया हूं
न मांग मुझ से मेरी तन्हाईयां इस कदर।
मैं इन्हें अपना सब कुछ खो कर लायाहूं॥
क्या पढे़गा भला कोई इतिहास अब मेरा ।
मैं वो पृष्ठ स्याही में डुबो कर आया हूं ॥
न रुला अब किसी और अंजाम के लिए ।
अपने जनाज़े पर बहुत रो कर आया हूं ॥
निरी प्यास है इन में न कर तलाश पानी ।
मैं इन आंखों में अभी हो कर आया हूं ॥
कांधे पर मेरे हाथ मत रख ऐ रकीब ।
जवाब देंहटाएंयह लाश बडी़ दूर से ढो कर लाया हूं
bahut pyari panktiyan
ek shandar gajal...:)
न रुला अब किसी और अंजाम के लिए ।
जवाब देंहटाएंअपने जनाज़े पर बहुत रो कर आया हूं ॥
निरी प्यास है इन में न कर तलाश पानी ।
मैं इन आंखों में अभी हो कर आया हूं ॥
bahut khoob gajal, ek ek gajal dil me uter gayi .badhai .........
http://amrendra-shukla.blogspot.com
ओमजी की कविताओं से तो आनंदित होने का सौभाग्य मिलता ही रहता है आज आपकी ग़ज़ल ने भी मन मोह लिया.
जवाब देंहटाएंआंखों से एक सपना खो कर आया हूं ।
अपनों में एक अपना खो कर आया हूं ॥
वाह क्या शेर कहा है आपने. इतनी उम्दा और मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बधाई. प्रणाम !
सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंek-ek shabd kuch keh reha hai. aap ki gazal padh kar usime doob gaya. is gazal ko hum tak pahunchane ke liye dhanyavaad
जवाब देंहटाएंआंखों से एक सपना खो कर आया हूं ।
जवाब देंहटाएंअपनों में एक अपना खो कर आया हूं ॥
some extraordinary intense lines ...
love it utmost..:)
आंखों से एक सपना खो कर आया हूं ।
जवाब देंहटाएंअपनों में एक अपना खो कर आया हूं ॥
बहुत सटीक....अन्तरंग द्वंद्व की सुन्दर अभिव्यक्ति ...हार्दिक बधाई...