सावन के दोहे
सावन की बरखा पड़ी,लगी झड़ी दिन रैन ।
आंखेँ बरसी प्रीत मेँ, प्रीतम देखूं आह ।
साजन बिन कहो बदरिया,किस विद आवै चैन ।1।
साजन बसेँ दूर देश मेँ,गये राज के काम ।
काम काम मेँ उधर जलेँ, इधर काम तमाम ।2।
सावन जलाए बदन को, बरखा लेती प्राण ।
साजन बिन अब सांवरा, पाएं कैसे त्राण ।3।
बूंद बूंद पानी पड़े, तन मेँ लागे आग ।
पिव वाणी के सामने,कड़वी कोयल राग ।4।
मिल कर झूला झूलती, पिव होते जो संग ।
बिन पिया तो ये सावन, करता कितना तंग ।5।
धन कमाने पिया गए,आया सावन मास ।
धन को तन नहीँ जाने, मांगे प्रीतम पास ।6।
अम्बर छाई बदरिया, धरती छाया नेह ।
प्रीतम आवन आस मेँ, सावन बरसे मेह ।7।
आंखेँ बरसी प्रीत मेँ, प्रीतम देखूं आह ।
धरती बादल मिल लिये,मेरी उलझी चाह ।8।
खत मेँ गत मैँ क्या लिखूं,आओ प्रीतम पास ।
सावन फीका जा रहा, तुझमेँ अटकी सांस ।9।
तुम बिन ये घर घर नहीँ, लगता है बनवास ।
सावन मेँ जो सग रहो, जीवन बांधूं आस ।10।
ओम पुरोहित जी कई वर्ष पहले सूरतगढ़ में रहा हूँ और आपसे शायद भेंट भी हुई है, बहुत अच्छा लगा आज आपका ब्लाग देख कर।
जवाब देंहटाएंआंखेँ बरसी प्रीत मेँ, प्रीतम देखूं आह।
जवाब देंहटाएंधरती बादल मिल लिये,मेरी उलझी चाह।।
सावन का आभास करते सुंदर दोहे
धन कमाने पिया गए,आया सावन मास ।
जवाब देंहटाएंधन को तन नहीँ जाने, मांगे प्रीतम पास ।6।
बहुत सुंदर रचना लगी, एक से बढ कर एक ,
ओम जी सारे के दोहे अद्भुत हैं और सावन के समस्त रंगों को उजागर कर रहे हैं...इन कमाल के दोहों के लिए मेरी बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
सुन्दर दोहे .
जवाब देंहटाएंखत मेँ गत मैँ क्या लिखूं,आओ प्रीतम पास ।
जवाब देंहटाएंसावन फीका जा रहा, तुझमेँ अटकी सांस ।9।;;;;
Barsaat mein Nayika ke mann ki virah-vedna ko in doho me badi safalta se ukera hai aapne...badhai...:)
sawan ke dohe bahut sundar lage om ji...shukriya
जवाब देंहटाएंयही है महिमा सावन की .
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