शनिवार, जुलाई 16, 2011

ताज़ा हिन्दी कविताएं

* सपनोँ में मां *


गहरी नीँद के सपने

सदा होते हैँ अपने

जिनके सुख-दुख की पार

सपनोँ मेँ ही

पा ला लेते हैँ हम ;

मलाल तो ये है

नीँद आती नहीँ कभी

सपना भर !



मां डांटती रही

ता उम्र-

खुली आंख

मत देखो सपने

खुली आंख के सपने

बहुत सालते हैँ

इसी लिए हर सू

लोग उन्हेँ टालते हैँ !



आज

खुली आंख के सपनोँ मेँ

मां है

कैसे टालूं


‎‎[] प्यार []


कुछ लोग

रोटी की तलाश मेँ थे

कुछ लोग

प्यार की तलाश मेँ

कहीँ प्यार के आड़े रोटी आ गई

तो कहीँ रोटी के आड़े प्यार ।

किसी को रोटी मिल गई

किसी को प्यार

जहां जहां भी

रोटी का व्यपार पला

वहां वहां प्यार

दम तोड़ता गया !


‎* *


हवाएं मेरे शहर मेँ

उदास सी बहती हैँ

आजकल हर तरफ

शायद वे जान गई हैं

इधर गरजने वाले

दूधिया से दिखते

बादलों के दामन मेँ

पानी नहीँ है उधर !



अज्ञात भय से

डरी सहमी हवाएं

पेड़ोँ के सान्निध्य से भी

बहुत कतराने लगी हैँ

चुपचाचप निकल जाती हैँ

शहर से दूर

धोरोँ पर

सिर धुन्न कर

तभी तो आजकल

नहीँ हिलता कोई पत्ता

पेड़ की किसी शाख पर !



रेत नहीँ छोड़ती

दामन हवा का

हाथ थाम कर

निकल पड़ती है

आकाश मेँ ढूंढ़ने

प्यास भर पानी

() मन चले ()




तेरे-मेरे-सब के

मन माने की बात

मन चले तो मनचले

मौन मन मलीन !



मन के हारे

हार कथी सब ने

जीते मन ;

दौड़ाया जब भी जिस ने

उस के हाथ लगी

हार हर बार !



मन मेँ बसते

कितने सपने

कितने अपने

पालूं चाहत

सब से हो

साक्षात मिलन

इस उपक्रम मेँ

क्या मानूं जीत

क्या मानूं हार !



तेरी जीत-मेरी हार

मेरी जीत-तेरी हार

किस की जीत

किस की हार

होता साक्षात्कार

सब मन माने की बात !
 
‎* शेष रहे शब्द *


बहुत व्यापक है

हमारे बीच संवाद

निश्छल अकूंत

फिर भी

ऐसा तो नहीँ है

काम आ गए होँ

शब्दकोश के

सारे के सारे शब्द !



अभी तो शेष है

बहुत से सम्बोधन

हमारे तुम्हारे बीच

जिन्हेँ लाएंगे ढो कर

शेष रहे शब्द ही !





भाषा गणित नहीँ होती

इस लिए जरा रुको

शेष रहे शब्दोँ का

तलपट मत मिलाओ

शब्दकोश के पन्ने पलट कर।



आने वाले शब्द

अंतस से झरेंगे

या फिर हो सकते हैँ

शब्दकोशोँ से

बहुत दूर के

थोड़ा धैर्य भी रखो

अपने पास !
 

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत अच्छी रचना ||
    एक से बढ़कर एक प्रस्तुति ||
    बधाई ||

    हर-हर बम-बम, बम-बम धम-धम |
    तड-पत हम-हम, हर पल नम-नम ||

    अक्सर गम-गम, थम-थम, अब थम |
    शठ-शम शठ-शम, व्यर्थम - व्यर्थम ||

    दम-ख़म, बम-बम, चट-पट हट तम |
    तन तन हर-दम *समदन सम-सम || *युद्ध

    *करवर पर हम, समरथ सक्षम | *विपत्ति
    अनरथ कर कम, झट-पट भर दम ||

    भकभक जल यम, मरदन मरहम |
    हर-हर बम-बम, हर-हर बम-बम ||

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  2. om ji..bahut dino baad aapki hindi kavitayen padhne ko mili ..bahut achha lga...shukriya

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  3. कहीँ प्यार के आड़े रोटी आ गई

    तो कहीँ रोटी के आड़े प्यार ।

    किसी को रोटी मिल गई

    किसी को प्यार

    जहां जहां भी

    रोटी का व्यपार पला

    वहां वहां प्यार

    दम तोड़ता गया !
    अच्‍छी प्रस्‍तुति !!

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह बहुत अच्छी रचना
    सुन्दर प्रस्तुति पढ़कर मजा आ गया.
    http://meriparwaz.blogspot.com

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  5. मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
    एस .एन. शुक्ल

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