शनिवार, अगस्त 13, 2011

नो हिन्दी कविताएं

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*मिटाओ सबब *
आंख के आंसू
पौंछ भी लूं
भीतर के आंसू तो
कर ही देँगे नम
यह नमी
दिखेगी नहीँ
मेरा अंतस मगर
जला कर
कर देगी राख
यह राख
एक दिन
ढांप ही लेगी
तुम्हारा महल !

आंसू पौंछने के बजाय
मिटाओ सबब
और
वक्त रहते सीख लो
अंतस पढ़ना
जिस में
उफनता है बहुत कुछ
तुम्हारे विरुद्ध !
 
*कबूत्तरपन*
आप
कबूतर की तरह
आंख मूंद कर
नहीँ बच सकते
आपको देखना ही होगा
जो तुम्हारी ओर
बढ़ रहे हैं वे
पालतू बिल्लियोँ सरीखे
हरगिज नहीँ हैँ
तुम्हारा ये कबूतरपन
उनकी पूंजी
और
आपकी मौत का
साक्षात कारण है !

या तो आपको
दौड़ कर
बिल्लियों से
निकलना होगा
बहुत दूर
या फिर
झपटना ही होगा
पलट कर उन पर !

याद रखना
आपका कबूतरपना
जंग मेँ
हार की स्विकारोक्ति है
आपकी अपनी !
.
* हम बोले रोटी *

उन्होँने कहा-
देखो !
हम ने देखा
वे खुश हुए ।

उन्होंने कहा-
सुनो !
वे बहुत खुश हुए !

उन्होंने कहा -
खड़े रहो !
हम खड़े रहे
वे बहुत ही खुश हुए ।

उन्होंने कहा-
बोलो !
हम ने कहा "रोटी" !
वे नाराज़ हुए !
बहुत नाराज हुए !!
बहुत ही नाराज़ हुए !!!
*चलो चलेँ*
समझदारोँ की भीड़ मेँ
नहीँ बचती संवेदना
बचती ही नहीं
प्यार भरी मुस्कुराहट !
चलो वहां चलें
जहां सभी बच्चे होँ
पालनोँ मेँ झूलते
जो नाम पूछे बिना
मुस्कुराएं हमारी ओर !
उनके बीच
न ओसामा हो न ओबामा
न सैंसैक्स उठे न गिरे
न वोट डालने का झंझट
न भ्रष्टाचार न कपट !
वहां
सब के पास हो
सच मे करुण की निधि
कोई भी शीला
दीक्षित न हो
भ्रष्टाचार के खेल में !
*मेरा सपना*
रात भर जागना
इबादत ही तो है
किसी अज्ञात की
ज्ञात के लिए वरना
जागता कौन है !
तुम अज्ञात नहीँ हो प्रभु
तुम्हारे बारे मेँ सब
सुन जान लिया है मैँने
तुमने कहा भी है
मेरे भीतर
अंश है तुम्हारा
और फिर लौटना भी है
मुझे तुम्हारे भीतर !

कौन है फिर वो
जिसके लिए
जागता हूं मैँ
रात भर ;
जरूर कोई सपना है वह
जिसके आने से
डरता हूं मैँ !
*सपने*
तेरी आंखों मेँ
मेरे सपने
मेरे सपनोँ मेँ
तेरी आंखें !
कभी कभी
मेरे सपनोँ से
मगर हर पल
डरता हूं
तेरी आंखोँ से !

तेरी आंख के सपने पर
मेरा नियंत्रण
हरगिज नहीँ
सपनोँ पर
तेरा नियंत्रण
बहुत डराता है
फिर भी
न जाने क्योँ
खुली आंख भी
भयानक सपना आता है !
 
*दीया जलाएं*
आसमान साफ
बादल और बिजलियां मौन
गतिमंद है पौन
पसरा है अंधेरोँ मेँ
मौन सन्नाटा
मगर
निस्तेज नहीँ है सूरज
सारी गतियोँ को
कर देगा सक्रिय
अपने किसी एक फैसले से ।
आओ
हम करें प्रतिक्षा
सूरज के उगने की
तब तक
आओ जलाएं
एक एक दीया
अंधेरोँ से लड़ने के निमित
घरोँ की मुंडेर पर !
*बारिश*
मरुधरा पर
बारिश का बरसना
केवल पानी का गिरना नहीँ
बहुत कुछ बंधा है यहां ।
जैसे कि पेड़-पोधोँ की रंगत
मोर का नृत्य
प्रेमी वृंद के
मिलन की चाह
किसान की उम्मीद
सरकारी योजनाएं
बजट की परवाज !

बारिश सोख भी सकती है
कर्ज मेँ आकंठ डूबे नत्थू
अधबूढ़ी कंवारी बिमली के
कई सावन से टपकते आंसू ।

मरुधर जिन्हे
संजोए बैठी है
बारिश की आस मेँ
अंकुरित हो
कुंठित बीज
बचा सकते हैँ
मिटती लाज मरुधर की
बारिश मेँ !
* फिर कविता लिखेँ *
आओ
आज फिर कविता लिखें
कविता मेँ लिखेँ
प्रीत की रीत
जो निभ नहीँ पाई
याकि निभाई नहीँ गई !

कविता मेँ आगे
रोटी लिखें
जो बनाई तो गई
मगर खिलाई नहीँ गई !

रोटी के बाद
कफन भर
कपड़ा लिखें
जो ढांप सके
अबला की अस्मत
गरीब की गरीबी !

आओ फिर तो
मकान भी लिख देँ
जिसमेँ सोए कोई
चैन की सांस ले कर
बेघर भी तो
ना मरे कोई !

चलो !
अब लिख ही देँ
सड़कोँ पर अमन
सीमाओँ पर सुलह
सियासत मेँ हया
और
जन जन मेँ ज़मीर !

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