बुढ़ापा हुआ बीमारी
तूं जनमा मैं बलिहारी बेटा।
वो खुशियां अब मैं हारी बेटा ।।
छोड़ा घर देश गांव भी अपना ।
ऐसी भी क्या लाचारी बेटा ।।
ममता छोड़ क्या ओहदा पाया ।
हो गए बड़े तुम व्यपारी बेटा ।।
जोड़ जोड़ सपने महल बनाया ।
लगती नहीं अब बुहारी बेटा ।।
बिना सहारे अब पांव न उठते।
बुढ़ापा हुआ बीमारी बेटा ।।
दूर देश मेँ जो जाया पोता ।
सुनी न आंगन किलकारी बेटा ।।
बहू आती घर आंगन सजाती ।
सध जाती दुनियादारी बेटा ।।
तूं जनमा मैं बलिहारी बेटा।
वो खुशियां अब मैं हारी बेटा ।।
छोड़ा घर देश गांव भी अपना ।
ऐसी भी क्या लाचारी बेटा ।।
ममता छोड़ क्या ओहदा पाया ।
हो गए बड़े तुम व्यपारी बेटा ।।
जोड़ जोड़ सपने महल बनाया ।
लगती नहीं अब बुहारी बेटा ।।
बिना सहारे अब पांव न उठते।
बुढ़ापा हुआ बीमारी बेटा ।।
दूर देश मेँ जो जाया पोता ।
सुनी न आंगन किलकारी बेटा ।।
बहू आती घर आंगन सजाती ।
सध जाती दुनियादारी बेटा ।।
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जवाब देंहटाएंदूर देश मेँ जो जाया पोता ।
जवाब देंहटाएंसुनी न आंगन किलकारी बेटा ।।
बहू आती घर आंगन सजाती ।
सध जाती दुनियादारी बेटा ।।
बहुत ही भावपूर्ण और सुन्दर शेर और ग़ज़ल ! जय हो कागद गुरु जी !