<> आए सपने <>
रात भर
जगी आंख
आए सपने
सपनों मेँ अपने
जो रहे मूक
हम न रहे मून ।
हमारा एकालाप
तलाश न पाया
मुकाम वांछित
फिर भी
थमा नहीं
सिलसिला बात का
थाम कर
डोर शब्दों की
करता रहा पीछा
तुम्हारे अंतस का
रात भर
जगी आंख
आए सपने
सपनों मेँ अपने
जो रहे मूक
हम न रहे मून ।
हमारा एकालाप
तलाश न पाया
मुकाम वांछित
फिर भी
थमा नहीं
सिलसिला बात का
थाम कर
डोर शब्दों की
करता रहा पीछा
तुम्हारे अंतस का
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