<>कागद तो कोरा था<>
अपना बना कर न जाने क्यों बहलातें हैं लोग ।
देकर कर जख्म न जाने क्यों सहलाते हैं लोग ।।
मां जाए हैं सभी लाए शक्ल अपनी उधार में ।
ला कर हम को क्यों आइना दिखाते हैं लोग ।।
पाक ही है दामन तमाम उनका कीचड़ में ।
इश्तिहार बांट कर रोज क्योँ जताते हैं लोग ।।
मजहब है इंसानों का जब इंसानियत ही ।
तो फिर क्यों इंसानी खून बहाते हैं लोग ।
कागद तो कोरा था लिखे जज़बात आपने ।
खुदा का लिखा फरमान क्यों बताते हैं लोग ।
अपना बना कर न जाने क्यों बहलातें हैं लोग ।
देकर कर जख्म न जाने क्यों सहलाते हैं लोग ।।
मां जाए हैं सभी लाए शक्ल अपनी उधार में ।
ला कर हम को क्यों आइना दिखाते हैं लोग ।।
पाक ही है दामन तमाम उनका कीचड़ में ।
इश्तिहार बांट कर रोज क्योँ जताते हैं लोग ।।
मजहब है इंसानों का जब इंसानियत ही ।
तो फिर क्यों इंसानी खून बहाते हैं लोग ।
कागद तो कोरा था लिखे जज़बात आपने ।
खुदा का लिखा फरमान क्यों बताते हैं लोग ।
"अपना बना कर न जाने क्यों बहलातें हैं लोग ।
जवाब देंहटाएंदेकर कर जख्म न जाने क्यों सहलाते हैं लोग ।।"
"मजहब है इंसानों का जब इंसानियत ही ।
तो फिर क्यों इंसानी खून बहाते हैं लोग ।|
वाह ! लाजवाब शेर और बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल |