रविवार, अप्रैल 01, 2012

हम भी कैसे माली हैं

बेटी की शादी पर कविता
================
* हम भी कैसे माली हैं *
================

उगा बिरवा
आंगन मेरे
फैला चौफेर
पात पसारे
शीतल मधुरिम
मंद मंद महक
बिखेरी पासंग मेरे
उसकी मोहक छाया में
दिन गुजरे सारे
आज अचानक
मंजर बदला
अपने हाथों हम ने
अपना पाला प्यारा
बिरवा सौंप दिया
अब जा रुपा
बगिया दूजी
वहां खिले फले
सोच लिया ।

हम भी कैसे माली हैं
अपनी ही देह से
काट कलम सी
अंकुराते बिरवा
फिर सौंप किसी दूजे को
जार जार आंसू बहाते हैं
लुट पिट कर
अपने ही हाथों
कितने खाली खाली से
विकल अंग रह जाते हैं !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें