रविवार, अप्रैल 01, 2012

घर मेरा है

[><]=  =[><]
नहीं पड़े कदम
घर की दहलीज पर
छत के नीचे
न भोजन पका है
न खाया गया है
एक भी रात
नहीं गुजरी
जीवन के सपनों वाली
जीवन में अपनों वाली
फिर भी
घर मेरा है
बनाया जो है मैंने !

मेरे घर के पास ही
डेरा है पगेरूओं का
खुले आसमान
बिछे हैं तप्पड़
तने है टाट के चंदोवे
जिन में से
उठ उठ आती है महक
प्याज-लहसुन से बनी
चटपट चटनी की
अंगार सिकी रोटियां
लुभाती हैं बार बार
राहगीरों को यक ब यक
देर रात सुनाई देती हैं
लोरियां-ठिठोलियां
चूड़ियां-पायलें
घर नहीं है ईंटो वाला
खुले आसमान के नीचे
चंदोवे में बतियाते
हर स्त्री-पुरुष को
फिर भी गर्व है
घर मेरा है ।

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