यूं तो घर में भी
कम नहीं थी बातें
मगर
बाहर ही गुजारते थे
हम बातों में रातें !
दादाजी कहते थे
घर से बाहर
नहीं जानी चाहिए
घर की बातें
बाहर की बातें भी
नहीं आनी चाहिए
घर के भीतर
इसी भय में हम
अपने भीतर की बातें
छोड आया करते थे
घर के बाहर
फिर भी
कुछ दिन बाद
आ ही जाती थीं बातें
हमारी बन कर
घर के भीतर ।
घर चाहे
लौटते देरी से
मगर हर पल
जेहन में रहता था घर
बातों में घर का डर ।
घर से बाहर
बातों के अंत में
आ जाया करता था घर
या फिर
घर के आते-आते
हो जाया करती खत्म
सारी बातें !
कम नहीं थी बातें
मगर
बाहर ही गुजारते थे
हम बातों में रातें !
दादाजी कहते थे
घर से बाहर
नहीं जानी चाहिए
घर की बातें
बाहर की बातें भी
नहीं आनी चाहिए
घर के भीतर
इसी भय में हम
अपने भीतर की बातें
छोड आया करते थे
घर के बाहर
फिर भी
कुछ दिन बाद
आ ही जाती थीं बातें
हमारी बन कर
घर के भीतर ।
घर चाहे
लौटते देरी से
मगर हर पल
जेहन में रहता था घर
बातों में घर का डर ।
घर से बाहर
बातों के अंत में
आ जाया करता था घर
या फिर
घर के आते-आते
हो जाया करती खत्म
सारी बातें !
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