. मन का मैल
तुम्हें हर वक्त
चिंता रहती है
दूसरों के मन के मैल की
अपने मन में कभी
झांकते ही नहीं तुम
जहां मैल का
अथाह सागर
हिलोरें मारता है
बह बह जाता है
दूसरों के मनों तक ।
दूसरों के मनों में
दिकता मैल
तुम्हारे मन के मैल का
अंशी ही तो है
अपना मन निर्मल कर
फिर दिखेंगे तुम्हें
चहूं ओर निर्मल मन !
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