अपना बना कर न जाने क्यों बहलातें हैं लोग ।
देकर जख्म न जाने क्यों सहलाते हैं लोग ।।
मां जाए हैं सभी लाए शक्ल अपनी उधार में ।
ला कर हम को क्यों आइना दिखाते हैं लोग ।।
पाक ही है दामन तमाम उनका कीचड़ में ।
इश्तिहार बांट कर रोज क्योँ जताते हैं लोग ।।
मजहब है इंसानों का जब इंसानियत ही ।
तो फिर क्यों इंसानी खून बहाते हैं लोग ।
कागद तो कोरा था लिखे जज़बात आपने ।
खुदा का लिखा फरमान क्यों बताते हैं लोग ।
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