सोमवार, जुलाई 29, 2013

<>कागद तो कोरा था<>


अपना बना कर न जाने क्यों बहलातें हैं लोग ।
देकर जख्म  न जाने क्यों  सहलाते हैं लोग ।।
मां जाए हैं सभी लाए शक्ल अपनी उधार में ।
ला कर हम को क्यों आइना दिखाते हैं लोग ।।
पाक  ही है दामन  तमाम  उनका कीचड़ में ।
इश्तिहार बांट कर रोज क्योँ जताते हैं लोग ।। 
मजहब  है  इंसानों  का जब इंसानियत ही ।
तो  फिर क्यों  इंसानी  खून  बहाते हैं लोग ।
कागद  तो  कोरा था लिखे जज़बात आपने ।
खुदा का लिखा फरमान क्यों बताते हैं लोग ।

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