. मन में हो कुछ
मन में हो कुछ कहने की हो इच्छा सुनने को भी हो अगर कोई आतुरतो जरूरत नहीं होतीभाषा में व्याकरण कीलिपि में बंधे
स्वर और व्यंजन की ।
मन से मन को संदेश
किसी भाषा से नहीं
ऐषणाओं से जाता है
भाषा तो ढोती है
इन ऐषाणाओं को
जगत में सदियों तक
किसी के चाहने
या न चाहने पर भी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें