रविवार, मार्च 30, 2014

मुझे पुरुष करती हुई

उस ने दिन कहा
दिन लगने लगा
उस ने रात कहा
रात उतरने लगी
उस ने कहा वसंत
वसंत छाने लगा
उस ने फूल कहा
फूल खिलने लगे
महक पसर गई
मेरे चारों ओर
सब कुछ होता रहा
उसी के कहने पर
हर दिन
हर पल !

अब वह
उदास और मौन है
अब वैसे नहीं हैं
रात और दिन
नहीं है वसंत में
वैसी धमक
गंधहीन हो गए
सारे फूल !

यूं ही नहीं हो गई
वह अर्धांगिनी
सच है
वही तो है प्रकृति
मुझे पुरुष करती हुई !

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