अंधेरो से
लड़ना चाहता हूं
मगर दिखता नहीँ
कोई साफ साफ अक्स
इस कलमस मेँ
सब के सब
धुआंए है
स्याह धुएं मेँ ।
चौतरफ़ा यह धुआं
आया कहां से
नहीँ बताया
धुआंए चेहरोँ ने
और धुआंने को आतुर
दूसरे लोगोँ ने !
कुछ लोग
कुछ लोगोँ का
जला रहे हैँ दिल
सुलगा रहे हैँ ज़मीर
कुछ लोग
बस केवल
हवा दे रहे हैँ
या फिर झोँक रहे हैँ
अपना ईमान !
कुछ लोग
मुठ्ठियां भीँच रहे हैँ
दूर खड़े
दूर ही खड़े
कुछ और लोग
दांत पीस रहे हैँ
मुठ्ठियां भीँचने वालोँ पर !
कुछ लोगोँ ने
खोल दी हैँ मुठ्ठियां
और सुस्त चाल चलते
कर रहे हैँ
उनका या समय का
मौन अनुकरण !
मुझे तो अभी
लड़ना है
पहले खुद से
अंधेरोँ से
और फिर उनसे
जिनका आभामंडल है
यह स्याह अंधेरा !
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