न इश्क है
न बीमारी
न चिँता है
न खुमारी
फिर क्योँ उड़ गई
रातोँ की नीँद हमारी ?
सवाल तो
और भी हैँ
फिलहाल
इसी का चाहिए
हमेँ जवाब ;
पेट भरने के बाद भी
क्योँ चाहिए तुम्हेँ
दुनियां की दौलत सारी ?
[2]
हाड़ तोड़ मेहनत कर
घुटनोँ तलक पसीना बहा
पेट नहीँ भरता
मेरे नत्थू का
जब से उगी है मूंछ
मुठ्ठियां तानता है
अब खाता नहीँ
शपथ संविधान की !
क्योँ कहता है वह
एक संविधान से पहले
दो जून धान जरूरी है ?
[3]
क्या जवाब दूं
मेरे नत्थू को
जो बार बार पूछता है-
धाए अघाए लोग
संसद मेँ
और
जन्म के भूखे
दड़बोँ मेँ
क्योँ रहते हैँ ?
[4]
जब जब भी
चूल्हे से ज्यादा
दिल जलता है
मुझ से पूछता है
मेरा नत्थू ;
जवाब दो
क्योँ पटक दी गई
हमारे ऊपर
जन्म से पहले
गरीबी की रेखा
क्योँ नहीँ उकेरी गई
अमीरी की रेखा ?
[5]
भूखे लोग
जब जब भी
संगठित हो
करते हैँ अनशन
उन पर
क्योँ बरसाई जाती हैँ
खुले हाथ लाठियां
क्योँ नहीँ बरसाई जाती
दो जून रोटियां ?
मेरे पास
कोई जवाब नहीँ
नत्थू के इन सवालोँ का
तुम ढूंढ़ लो
वह दड़बे से
निकल गया है !
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