** मेरी दो हिन्दी कविताएं **
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** गलियां **
कुछ गलियां
छोड़नी पड़ती हैं
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** गलियां **
कुछ गलियां
छोड़नी पड़ती हैं
और
कुछ गलियों में
जाना पड़ता है
कुछ आदमियों के कारण ।
गलियां
वहीं रहती हैं
वही रहती हैं
बदलते रहते हैं
आपसी सम्बन्ध
ठीक मौसम की तरह !
** रास्ता **
चलें
ऐसे रास्तों पर
जहां चल सकें
जूते पहन कर ।
अधिक से अधिक
ऐसा रास्ता भी
हो सकता है ठीक
जहां चल सकें
जूती हाथ में थाम कर ।
भला कैसे हो सकता है
वह रास्ता
जहां चलना पडे़
सिर पर उठा कर
अपनी ही जूतियां !
.
कागद साहब , आपकी दोनों कवितायें पढ़ी और पढ़कर ब्लॉग का टाइटल ' कागद हो तो हर कोई बांचे.........' सार्थक लगा. आप की दोनों कवितायें सरल भाषा में जीवन की कटु सच्चाइयाँ बयान करती हैं . कितने ही रिश्ते और रास्ते आपस में इस कदर घुले-मिले होते हैं कि शायद इनमें से किसी एक की वजह से दूसरा अर्थ पा जाता है . लांस एंजिल्स के लेखक रोबर्ट ग्रीन का एक आर्टिकल इन्हीं दिनों एक अखबार में पढ़ा था , उसमें उन्होंने कहा था कि शहर , गलियाँ , मोहल्ले और बाज़ार तभी तक मायने रखते हैं जब तक हम उनसे जुड़े होते हैं . दूसरी कविता भी मानवीय संम्बन्धों और उनके निभाने की जरूरत और कहीं कहीं मज़बूरी का बयान करती है . आपकी कवितायें पढ़कर बेहद अच्छा लगा. आशा है आपका साहित्यिक आशीर्वाद मुझे साहित्य साधना में मदद करेगा.
जवाब देंहटाएंआपका जीत
sahi kaha sir jee
जवाब देंहटाएंzindgi pe hamara koi control nahi hain
hame toh nafrat ka bhi hak nai hain
"bus dil ko samajhana padta hian kuch aadmiyo k karan
aansu daba k muskarana padta hain kuch aadmiyo k karan"
Jeet Tarachand Shandilya
वाह जी बहुत ही सुंदर रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभला कैसे हो सकता है
जवाब देंहटाएंवह रास्ता
जहां चलना पडे़
सिर पर उठा कर
अपनी ही जूतियां !
rasta to nahi hota sir...par log aajkal apni ke badle dusro ki jutiyon sir pe uthane me khub biswas karte hain..:)
ek bahut sarthak rachna..
aapki blog atchhi lagi
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम !
जवाब देंहटाएंक्या कहू ... पढ़ कर आप की इन कविताओं को चेरे में एक मुस्कान आ गयी . बेहद सुंदर .
आभार
सादर !
कागद जी दोनों रचनाये बहुत ही सुंदर अर्थपूर्ण और भावात्मक. धन्यवाद
जवाब देंहटाएं"गलियां
जवाब देंहटाएंवहीं रहती हैं
वही रहती हैं
बदलते रहते हैं
आपसी सम्बन्ध
ठीक मौसम की तरह !"
सही कहा आपने..
जिंदगी से कुछ लोगों को निकला नहीं जा सकता....
हाँ,सम्बन्ध बदल लिए जाते हैं....
और गलियाँ भी...!!
"भला कैसे हो सकता है
वह रास्ता
जहां चलना पडे़
सिर पर उठा कर
अपनी ही जूतियां !"
सही कहा है आपने....
और उन लोगों से सीख भी लेनी चाहिए जो
दूसरों की जूतियाँ भी अपने सिर पर उठाये घूमते हैं...!!
अच्छी,सच्ची,जीवन उपयोगी सीख....
सुन्दर.....बहुत सुन्दर.....!!